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________________ जैन कथा कोष ११३ कैकेयी ने घोर तप किया और आयुष्य पूर्ण कर अविनाशी मोक्षपद की अधिकारिणी बनी। ___–त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व ७ ६३. कौशल्या 'कौशल्या' 'कुशस्थल' के महाराज 'सुकौशल' की पुत्री थी। कौशल्या की माता का नाम 'अमृतप्रभा' था। राजा-रानी के दिल में सन्तान-प्राप्ति की तीव्र अभिलाषा थी। प्रौढ़ावस्था में एक पुत्री हुई, जिसका नाम 'अपराजिता' रखा गया। कौशल राजा की पुत्री होने से इसका नाम 'कौशल्या' ही अधिक प्रसिद्ध हुआ। __ अयोध्या के महाराज 'दशरथ' जब दिग्विजय करते कुशस्थलपुर आये, तब सुकौशल ऐसे कब आज्ञा मानने वाला था। युद्ध में सुकौशल पराजित हुआ। पर अपची पराजय का जहाँ उसे शोक हुआ, वहाँ हर्ष इस बात का था कि पुत्री के लिए सुयोग्य वर सहज ही मिल गया। राजा ने अपनी इकलौती पुत्री का विवाह दशरथ के साथ कर दिया। कौशल्या महाराज दशरथ की पटरानी बनी। ___महाराज दशरथ के सुमित्रा, कैकेयी और सुप्रभा—ये तीन रानियाँ और भी थीं। कौशल्या का इन सबके प्रति कोई भी सौतभाव नहीं था। कौशल्या के ही उदर से श्रीराम का जन्म हुआ। 'राम' की मर्यादापुरुषोत्तमता विश्वविदित है। पुत्र शुभ संस्कारी तब ही हो सकता है, जब उसे माता-पिता से शुभ संस्कार मिलें। देखा जाये तो पुत्र की सही शिक्षिका माँ ही हुआ करती है। अपने पिता के वचन-पालन के लिए अयोध्या के शासन को ठुकराकर राम ने जब वनवास ले लिया और वन जाने लगे तब राम ने आकर कौशल्या को प्रणाम किया। कौशल्या ने अपने आँसू पोंछते हुए राम से कहा—'वत्स ! पिता को ऋण-मुक्त करने तुम वन जा रहे हो, सकुशल रहना । मैंने 'कैकेयी' के साथ इस जन्म में ऐसा कोई दुर्व्यवहार नहीं किया, जिससे मुझे तुम्हारा वियोग यों सहना पड़े। पर लगता है, मेरे ही किसी पूर्वजन्म के कर्मों का फल है। अतः न तो मेरे मन में उसके प्रति तनिक भी दुर्भाव है और न ही तुम विमाता कैकेयी के प्रति दुर्भाव रखना । अन्य तो निमित्त मात्र ही हो सकते हैं। शुभाशुभ फल तो व्यक्ति को अपने किये हुए कर्मों का ही मिलता ।'
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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