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११० जैन कथा कोष
आचार्यदेव के आगमन के कुछ समय बाद श्रावक समुदाय आया और क्षमा माँगते हुए आचार्यश्री से निवेदन किया—'क्षमा करें, गुरुदेव ! हम लोग आपके स्वागतार्थ उपस्थित न हो सके । आज मोदकोत्सव है, उसमें लगे रहे।'
आचार्य ने पूछा–मोदक किस वस्तु के बनते हैं?
श्रावकों ने बताया—यह तो अपनी आर्थिक स्थिति और रुचि पर निर्भर है—दाल, बेसन आदि कई प्रकार के मोदक बनते हैं और केसरिया मोदक भी बनते हैं। केसरिया मोदक स्वादिष्ट भी अधिक होते हैं, लेकिन उनमें खर्च अधिक पड़ता है। ___आचार्यदेव ने सोचा कि मोदक गरिष्ठ भोजन है। इसको खाने से स्वाध्याय
और ध्यान में चित्त एकाग्र नहीं हो सकेगा। इसलिए उन्होंने उपवास पच्चक्ख लिया और अन्य मुनियों को भी ऐसी ही प्रेरणा दी। उन सबने भी उपवास का नियम कर लिया।
लेकिन सव्रत मनि ने ज्योंही केसरिया मोदकों का नाम सुना, उनके सप्त संस्कार जागृत हो गये। उन्होंने उपवास नहीं किया और गुरुदेव से आज्ञा लेकर गोचरी हेतु चल दिये। ___मुनिश्री प्रत्येक घर में जाते और देखते कि केसरिया मोदक हैं या नहीं? दोपहर से संध्या तक घूमते रहे, लेकिन उन्हें केसरिया मोदकों का योग प्राप्त नहीं हुआ। अब तो सुव्रत मुनि विह्वल हो गये। रसासक्ति उनपर इतनी सवार हो गई कि उन्हें समय का भी ध्यान नहीं रहा। रात होने पर भी सड़कों पर चक्कर लगाते रहे। उनके मुँह से 'केसरिया मोदक केसरिया मोदक' शब्द ऐसे निकल रहा था जैसे कोई बेभान दशा में उन्मत्त व्यक्ति प्रलाप कर रहा हो।
श्रावक जिनभद्र ने ये शब्द सुने तो उसने खिड़की से देखा। मुनिश्री को इस रूप में देखकर वह चौंका। वह समझ गया कि केसरिया मोदक न मिलने से मुनिश्री पर अप्रिय असर हुआ है और ये अपना संतुलन खो बैठे हैं। उसने अपना कर्त्तव्य निश्चित किया और मुनिश्री को आदर-सहित घर के भीतर बुला लाया तथा उन्हें केसरिया मोदक बहराए। जब मुनिश्री चलने लगे तो उसने विनम्र स्वर में पूछा-'मुनिप्रवर ! कितना समय हुआ है? ____ मुनि ने समय जानने के लिए ज्योंही आकाश की ओर दृष्टि उठाई तो तारोंभरी रात को देखकर वहीं जड़ हो गये—यह क्या? आधी रात का समय ! और मैं गोचरी हेतु भटक रहा हूँ। उनके मन में घोर पश्चात्ताप उभर आया।