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________________ जैन कथा कोष १०६ और रंगीन वस्त्रों के प्रयोग की साधुओं को छूट दी, वहाँ भगवान् महावीर ने केवल अल्पमूल्य वाले श्वेत वस्त्रों की ही आज्ञा दी। इसका क्या कारण है?' गौतम ने समाधान देते हुए कहा—'वक्र-जड़, ऋजु-जड़ तथा ऋजु-प्राज्ञ साधुओं के मन में आसक्ति के भाव पैदा न हों, संयम की यात्रा का सकुशल निर्वाह कर सकें, लोगों में प्रतीति हो तथा कोई भी अकार्य करते हुए वेश को देखकर मन में झिझक हो कि मैं साधु हूँ, यह काम मेरे लिए अनाचीर्ण है इसके वेशभूषा की उपयोगिता है। साधकों की मनोभूमिका को लक्ष्य करके ऐसा किया गया है।' ___यों केशी स्वामी ने विविध विषयों पर गौतम से बारह प्रश्न किये और गौतम स्वामी ने सबका समुचित समाधान किया। इस समाधान से सम्पूर्ण परिषद् को सन्तोष हुआ। शिष्यों की जिज्ञासाएं समाप्त हुईं। स्वयं केशी स्वामी अपनी शिष्य-मण्डली सहित पाँच महाव्रतरूप धर्म का स्वीकरण करके गौतम स्वामी के गण में सम्मिलित हो गये। अन्त में केशी स्वामी केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष में विराजमान हुए। -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन २३ ६१. केसरिया मोदक सुव्रत का जन्म एक धनी परिवार में हुआ था। उसे सभी प्रकार के सुख-साधन उपलब्ध थे। उसका लालन-पालन वैभवपूर्ण ढंग से हुआ था। घर में अनेक प्रकार के पकवान बनते रहते थे, लेकिन सुव्रत को केसरिया मोदक ही अधिक पसन्द थे। जब भी उसकी इच्छा होती, केसरिया मोदक तैयार हो जाते। इस प्रकार लाड़-प्यार और सुख-सुविधा में पलते हुए सुव्रत बड़ा हो गया। __ एक बार उस नगर में आचार्य शुभंकर अपने संघ-सहित पधारे। उनके उपदेशों से प्रभावित होकर सुव्रत प्रव्रजित हो गया। तपःसाधना करते हुए अपनी प्रखर प्रतिभा से संपूर्ण आगम साहित्य का अभ्यास कर लिया। उसकी लगन, रुचि तथा तप:साधना की साथी मुनि भी प्रशंसा करते और आचार्य तो अपने सुयोग्य शिष्य को पाकर आनंदित थे ही। __ अनेक जनपदों में विहार करते हुए आचार्य शुभंकर राजगृह नगरी में अपने संघ-सहित पधारे। उस दिन राजगृह में मोदकोत्सव था। सभी घरों में मोदक बन रहे थे। कहीं दाल के तो कहीं बेसन के और कहीं केसरिया मोदक।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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