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________________ जैन कथा कोष ८७ अपनी पत्नी द्रौपदी का पराभव भी सहना पड़ा। यहाँ तक कि भिक्षुक का वेश बनाकर वनवास लेना पड़ा। 'द्रौपदी' तो साथ गई ही, पर माँ कुन्ती को भी वन-वन भटकना पड़ा । दुर्दिनों का चक्र था | तब ही तो कुन्ती ने एक प्रसंग पर स्त्रियों को परामर्श देते हुए कहा था—“बहनों ! देखो, यदि पुत्र ही पैदा करना हो तो भाग्यवान पुत्र पैदा करना । न ही हमें वीरों की आवश्यकता है, न बुद्धिमानों की । वी और बुद्धिमान देख लो मेरे पुत्र दीन दशा के मारे वन-वन भटक रहे हैं । " कुन्ती सच्ची धर्मनिष्ट् वाली एक सन्नारी थी । एक बार वन में द्रौपदी के आग्रह से 'भीम' एक तालाब में से कमल लाने गया। थोड़ी दूर तक 'भीम' दीख रहा था । फिर वह डूब गया। जब वह नहीं आया, तब क्रमशः पाँचों है। भाई चले गये, पर लौटकर आये नहीं । पाँचों भाई डूब गये । उनके डूबने का कारण यह था कि वह तालाब नागराज का था । उनकी आज्ञा बिना उसमें कोई प्रवेश नहीं कर सकता था । पाण्डवों ने क्योंकि नागराज की आज्ञा बिना ही तालाब में प्रवेश किया था, इसलिए सरोवर के रक्षक नागदेव उन्हें बाँधकर नागराज के पास ले गये थे। दिन अस्त हो गया । अँधेरी रात में उस निर्जन वन में 'कुन्ती' और 'द्रौपदी' अकेली थीं। उनका चिन्तातुर होना स्वाभाविक था । अन्त में दोनों ही प्रभु के ध्यान में लीन हो गईं। उनकी तन्मयता को देखकर इन्द्र ने पाण्डवों को छुड़वाने के लिए एक देव को भेजा । देव ने तालाब में रहने वाले नागराज से जाकर कहा-' इन्द्र महाराज ने कहा है इन्हें पता नहीं था कि यह तालाब नागराज का है, इसलिए अनजान में तुम्हारे इस तालाब में घुस आये। नागपाश से जो आपने बाँध रखे हैं, इन्हें छोड़ दीजिए। इनकी माँ 'कुन्ती' और 'द्रौपदी' के सत्यशील से मैं बहुत प्रभावित हूँ ।' नागराज ने ससम्मान उन्हें छोड़ दिया । उन्होंने आकर माँ को प्रणाम किया । वनवास समाप्त हुआ। पाण्डवों ने महाभारत का युद्ध भी जीता। धातकीखण्ड द्वीप में से द्रौपदी को वापस लाने के लिए श्रीकृष्ण के साथ भी गये । परन्तु गंगा नदी के किनारे पर उन्होंने श्रीकृष्ण से उपहास कर लिया। श्रीकृष्ण कुपित हो उठे और उन्हें देश- निर्वासन का दंड दे दिया । कुन्ती की विशेष प्रार्थना पर कृष्ण ने थोड़ा-सा स्थान उनके रहने के लिए दिया । वहाँ पाण्डवों ने नया नगर बसाया, जो 'पांडुमथुरा' कहलाई । यह कहावत भी चल पड़ी'तीन लोक से मथुरा न्यारी । '
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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