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जैन कथा कोष
भगवान् नेमिनाथ वहाँ पधारे। कुन्ती को विरक्ति हो गई। प्रभु से प्रार्थना करते हुए कहा—प्रभु ! मैंने जीवन में सभी नाटक देख लिये हैं। महाराज पांडु की महारानी बनी तो भीलनी की भाँति वन-वन में भी भटक आयी। वीरों की माता बनकर राजमाता कहलाई। आज फिर उन्हीं के साथ पांडुमथुरा में दुःख के दिन बिता रही हूँ। सही अर्थ में तो संसार का वास्तविक चित्र मैंने ही देखा है। ___ महाराज पांडु तथा कुन्ती दोनों ने संयम भार लिया तथा कुन्ती कर्म क्षय करके मोक्ष में गई।
-ज्ञाताधर्मकथा १६ -त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व ८
५२. कुन्थुनाथ भगवान
सारिणी जन्म-स्थान
गजपुर दीक्षा तिथि वैशाख कृष्णा ५ माता श्रीदेवी केवलज्ञान
चैत्र शुक्ला ३ पिता
शूर चारित्र पर्याय २३,७५० वर्ष जन्म-तिथि वैशाख कृष्णा १४ निर्वाण तिथि वैशाख कृष्णा १ कुमार अवस्था २३,७५० वर्ष कुल आयु ६५,००० वर्ष राज्यकाल ४७,५०० वर्ष चिन्ह
अज (बकरा) श्री कुन्थुनाथ भगवान् इस चौबीसी के सत्रहवें तीर्थंकर और छठे चक्रवर्ती थे। अपने पूर्वभव में ये पूर्वविदेहक्षेत्र के आवर्त विजय में खड्गी नाम की नगरी के राजा सिंहावह थे। राजा सिंहावह ने संवराचार्य से जिन-दीक्षा ली और घोर तप किया। आयु के अन्त में समाधिमरण करके सर्वार्थसिद्ध नामक पाँचवें अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुए। इनका जन्म हस्तिनापुर के महाराज 'सूर' के यहाँ हुआ। जब ये माता की कुक्षि में सर्वार्थसिद्ध विमान से आये तब इनकी माता श्रीदेवी ने चौदह स्वप्न देखे। वैशाख बदी १४ को प्रभु का जन्म हुआ। जब प्रभु माँ के गर्भ में थे, तब माता ने कुंथु नामक रत्नों की राशि स्वप्न में देखी थी, इसलिए प्रभु का नाम कुन्थुनाथ रखा गया। युवावस्था में अनेक सुन्दरियों के साथ प्रभु का पाणिग्रहण कराया गया। जब आयुधशाला में चक्र रत्न पैदा हो गया, तब श्री कुन्थुनाथ ने दिग्विजय के लिए प्रयाण किया और