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८६ जैन कथा कोष
देवता कुंडकौलिक का तर्क-पुरस्सर उत्तर सुनकर हर्ष-विभोर हो उठा। उसकी धार्मिक दृढ़ता की सराहना करता हुआ मुद्रिका देकर अपने स्थान को चला गया। - कुंडकौलिक जब भगवान महावीर के दर्शन करने गया तब भगवान ने साधु-सतियों को सम्बोधित करके इसकी सराहना करते हुए कहा—'श्रमणोपासक कुंडकौलिक ने अपनी तत्त्वश्रद्धा को दृढ़ रखकर देवता को तर्क-पुरस्सर उत्तर दिये। उसके असत्य का आग्रह शिथिल किया। जब श्रावक भी देवता को यों निरुत्तर कर सकता है, तब तुम तो अंगों के अध्येता हो, तुम्हें तो ऐसा करना ही चाहिए।' ___ कुंडकौलिक ने चौदह वर्ष तक श्रावकधर्म का पालन किया। गृह-कार्यों से निवृत्त होकर ग्यारह प्रतिमाओं को धारण किया। अन्त में मासिक अनशनपर्नुक समाधिमरण प्राप्त कर प्रथम स्वर्ग के अरुणाध्वज विमान में उत्पन्न हुआ। वहाँ से महाविदेह में उत्पन्न होकर मोक्ष प्राप्त करेगा।
-उपासकदशांग, अध्ययन ६
५१. कुन्ती (रानी) 'शौरीपुर' नगर के महाराज 'अंधकवृष्णि' के 'समुद्रविजय' आदि दस पुत्र थे तथा 'कुन्ती' और 'माद्री' दो पुत्रियाँ थीं। कुन्ती का विवाह 'हस्तिनापुर' के महाराज पांडु' से हुआ। विद्याधर के योग से महाराज पांडु 'शौरीपुर' नगर के उपवन में आये और 'कुन्ती' से मिले। वहीं उनका गन्धर्व विवाह हो गया। उसके एक पुत्र भी पैदा हुआ, जिसे नदी में बहा दिया गया था। आगे जाकर वह 'कर्ण' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। पर जब सारा भेद खुला, तब विधिपूर्वक विवाह कर दिया गया। ___'कुन्ती' के तीन पुत्र थे—'युधिष्ठिर', 'भीम', 'अर्जुन'। महाराज 'पांडु'
की दूसरी रानी 'माद्री' के भी दो पुत्र थे जिनके नाम थे—'नकुल' और 'सहदेव'। ये पाँचों पाण्डव कहलाये। ___ महाराज पांडु के बड़े भाई 'धृतराष्ट्र' के दुर्योधन आदि सौ पुत्र थे। वे कुरुजन-पद के नाम से कौरव कहलाये।
कौरवों के मन में प्रारम्भ से ही पाण्डवों के प्रति जलन थी। आगे जाकर वह विशेष रूप से उभरी । द्वन्द्व बढ़ता-बढ़ता यहाँ तक बढ़ा कि पाण्डवों को