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श्रुत - पंचमी के दिन इस ग्रन्थ की पूजा की। उस दिन से आज तक श्रुतपंचमी पर्व को मनाने की परम्परा सतत चली आ रही है ।
आचार्य धरसेन के चरणों में बैठकर ही दोनों शिष्यों ने कर्म सिद्धान्त का अध्ययन किया था । वे सफल शिक्षक और आचार्य थे। उनकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं—
धरसेन सभी अंगों और पूर्वों के एकदेश ज्ञाता थे
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अष्टांग महानिमित्त के पारगामी थे ।
मन्त्र-तन्त्र आदि शास्त्रों के वेत्ता थे । महाकम्मपयडिपाहुड के वेत्ता थे ।
प्रवचन और शिक्षण कला में पंडित थे ।
प्रश्नोत्तर शैली में शंका-समाधानपूर्वक शिक्षा देने में कुशल थे।
महनीय विषय को संक्षेप में प्रस्तुत कर देते थे।
2. पुष्पदन्त : पुष्पदन्त और भूतबलि का नाम साथ-साथ प्राप्त होता है, पर पुष्पदन्त भूतबलि से आयु में ज्येष्ठ थे । धरसेन के पश्चात् पुष्पदन्त का कार्यकाल 30 वर्ष बताया जाता है ।
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भूतबलि और पुष्पदन्त आचार्य का समय प्रथम शताब्दी का अन्तिम चरण माना जाता है ।
आचार्य पुष्पदन्त के कृतित्व के सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य या निष्कर्ष प्राप्त होते हैं
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षट्खण्डागम का आरम्भ आचार्य पुष्पदन्त ने किया है। सत्प्ररूपणा के सूत्रों के साथ उन्होंने षट्खण्डागम की रूपरेखा भी बनाई थी।
पुष्पदन्त ने आयु को अल्प जानकर अपनी रचना को जिनपालित के द्वारा भूतबलि को अवशिष्ट कार्य को पूर्ण करने के लिए भेजा था। सत्प्ररूपणा के सूत्रों के रचयिता पुष्पदन्त ही हैं ।
पुष्पदन्त ने अनुयोगद्वार और प्ररूपणाओं के विस्तार को अनुभव कर सूत्रों की रचना की थी ।
3. भूतबलि : पुष्पदन्त के नाम के साथ भूतबलि का भी नाम आता है। दोनों ने एक साथ धरसेनाचार्य से सिद्धान्त विषय का अध्ययन किया था। भूतबलि ने द्रविड़ देश में श्रुत का निर्माण अर्थात् ग्रन्थ-रचना की थी ।
भूतबलि सिद्धान्त ग्रन्थों के पूर्ण ज्ञाता थे, इसलिए इनके द्वारा रचित
78 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय