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________________ कर लेते हैं, वे मोह को अच्छी तरह पहचान जाते हैं। और मोह को जानने के बाद मोह उनके जीवन से नष्ट हो जाता है। इस ग्रन्थ में कुल 15 अधिकार हैं1. पेज्जदोस-विभक्ति अधिकार इस अधिकार में यह समझाया है कि मोह दो तरह का है-राग और द्वेष। फिर समझाया है कि इनके कितने प्रभेद हैं। 2. स्थिति-विभक्ति अधिकार दूसरे अध्याय में यह सब (राग और द्वेष) कितनी देर तक आत्मा में रहते हैं, कैसे काम करते हैं-इसका वर्णन है। 3. अनुभाग-विभक्ति अधिकार तीसरे अधिकार में बताया है कि जब हम इन कषायों को करते हैं तो कैसे कर्म बँधते हैं, कितनी देर कर्म बँधते हैं, उनमें फल देने की कैसी शक्ति होती है, वह कैसे फल देते हैं। 4. स्थिति-विभक्ति अधिकार चौथे अधिकार में समझाया गया है कि मोह और कषाय करने से हम किन कर्मों को बाँधते हैं। क्या वे कर्म स्थिर हो जाते हैं या उनमें कमी या बढ़ोतरी भी हो सकती है? 5. बन्धक अधिकार पाँचवें अधिकार में फिर इनके बन्धन की प्रक्रिया और इनके परिवर्तन की प्रक्रिया को समझाया गया है। 6. वेदक अधिकार छठे अधिकार में यह कर्म उदय में कैसे आते हैं। उदय आए बिना कभी-कभी खिर कैसे जाते हैं, आने के बाद वापस कैसे जाते हैं-यह समझाया गया है। 74 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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