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________________ वेदक सम्यक्त्व : पदार्थों का जो चल, मलिन और अगाढ़ दोष से युक्त श्रद्धान होता है, वह वेदक सम्यक्त्व है । · उपशम सम्यक्त्व : दर्शनमोह के उपशम से कीचड़ के नीचे बैठ जाने से निर्मल जल के समान जो निर्मल श्रद्धान होता है, वह उपशम सम्यक्त्व है । · 18. संज्ञी मार्गणा अधिकार इसके दो भेद हैं- संज्ञी और असंज्ञी | संज्ञी : मन- सहित जीवों को संज्ञी कहते हैं । असंज्ञी : मन-रहित जीवों को असंज्ञी कहते हैं । इस अधिकार में आगे इन दोनों जीवों की संख्या बताई है । · 19. आहार मार्गणा अधिकार तीन शरीर और छह पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलों के ग्रहण करने का नाम आहार है । एकेन्द्रिय से लेकर सयोगकेवली पर्यन्त जीव आहारक होते हैं । आहारक और अनाहारक का काल एवं संख्या भी इस अधिकार में बताई है । 20. उपयोगाधिकार आत्मा के चैतन्य परिणाम को उपयोग कहते हैं । वह दो प्रकार का हैसाकार उपयोग : साकार उपयोग के 8 भेद हैं । • निराकार उपयोग : निराकार उपयोग के 4 भेद हैं । इनका स्वरूप संक्षिप्त रूप से इस अध्याय में वर्णित है । • 21. ओघादेश अधिकार इस अधिकार में बताया है कि चौदह मार्गणाओं में कौन-कौन से गुणस्थान होते हैं । अर्थात् जीव की भिन्न-भिन्न स्थिति में क्या परिणाम (भाव) रहते हैं । 22. आलापाधिकार आलाप का अर्थ है - कथन-पद्धति या कथन-शैली । - इस अधिकार में आलाप ( कथन - शैली) के तीन भेद बताए हैं1. सामान्य 2. पर्याप्त 3. अपर्याप्त । उसके बाद चौदह मार्गणाओं और चौदह गोम्मटसार :: 63
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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