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________________ 15. लेश्या मार्गणा अधिकार कषायों से लिप्त स्वभाव को लेश्या कहते हैं । कषाय के उदय के छह प्रकार हैंतीव्रतम, तीव्रतर, तीव्र, मन्द, मन्दतर, मन्दतम; अतः लेश्या भी छह हो जाती हैंकृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, पीत लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या। इनकी पहचान इस प्रकार कर सकते हैं • कृष्ण लेश्या : तीव्र क्रोध का होना, वैर को न छोड़ना, धर्म और दया से रहित होना, मन्द होना, विवेकहीन होना, पाँच इन्द्रियों के विषयों का लम्पटी होना और मानी और मायावी होना कृष्ण लेश्यावाले के लक्षण हैं। • नील लेश्या : अतिनिद्रालु होना, दूसरों को ठगने में दक्ष होना और धनधान्य में तीव्र लालसा का होना, नील लेश्यावाले के लक्षण हैं। • कापोत लेश्या : दूसरों पर क्रोध करना, निन्दा करना, उन्हें दुख देना, उन पर दोष लगाना, उनका विश्वास नहीं करना, अपनी स्तुति सुनकर सन्तुष्ट होना और कार्य-अकार्य को न देखना कापोत लेश्यावाले के लक्षण हैं। • पीत लेश्या : जो कार्य-अकार्य को जानता है, समदर्शी है, दया-दान में तत्पर है और कोमल परिणामी है वह पीत लेश्यावाला है। • पद्म लेश्या : त्यागी, भद्रपरिणामी, निर्मल, कार्य करने में उद्यत होना और गुरुजनों की पूजा में रत होना पद्म लेश्यावाले के लक्षण हैं। 6. शुक्ल लेश्या : पक्षपात नहीं करना और निदान नहीं बाँधना, सबके साथ समान व्यवहार करना, इष्ट-अनिष्ट पदार्थों में राग-द्वेष नहीं करना शुक्ल लेश्यावाले के लक्षण हैं। 16. भव्य मार्गणा अधिकार जिन्हें आगे मुक्ति प्राप्त होगी, उन्हें भव्य कहते हैं । भव्यत्व और अभव्यत्व भाव कर्म के अनुसार नहीं हैं, स्वाभाविक हैं। 17. सम्यक्त्व मार्गणा अधिकार जिनेन्द्रदेव के द्वारा कहे गये छह द्रव्यों, पाँच अस्तिकायों और नौ पदार्थों के श्रद्धान करने को सम्यक्त्व कहते हैं। उनके तीन भेद हैं __•क्षायिक सम्यक्त्व : दर्शनमोहनीय के सर्वथा क्षय हो जाने पर जो निर्मल श्रद्धान होता है, वह क्षायिक सम्यक्त्व है। 62 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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