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मथुरा का राज्य माँगकर अपने पिता उग्रसेन को बन्दीगृह में डाल दिया। मथुरा का राजा बनकर कंस ने विचार किया कि मेरी इस सब समृद्धि का कारण वास्तव में वसुदेव हैं। मुझे उनका प्रत्युपकार करना चाहिए और उसने अपनी बहिन देवकी का विवाह वसुदेव के साथ कर दिया।
एक दिन की बात! अतिमुक्तक नामक मुनिराज (जो पहले कंस के भाई थे) आहार के लिए आए। उन्होंने जीवधशा से कहा कि "इसी देवकी के गर्भ से एक ऐसा पुत्र उत्पन्न होगा जो तेरे पति और पिता दोनों को मारेगा।" यह सुनकर जीवद्यशा बहुत रोई । कंस ने अतिशीघ्र वसुदेव के पास जाकर अपना वर माँगा कि देवकी के प्रसव मेरे ही घर में होने चाहिए। वसुदेव को अतिमुक्तक मुनिराज का वृत्तान्त मालूम नहीं था, अतः उन्होंने सहजभाव से कंस की बात स्वीकार कर ली। बाद में जब उन्हें इसका पता लगा तो बहुत दुख हुआ। वे वन में अतिमुक्तक मुनिराज के पास गये और उनसे विस्तारपूर्वक सारी बात साफ-साफ समझकर बहुत प्रसन्न हुए और मथुरा लौटकर निःशंक निवास करने लगे।
___यथासमय देवकी ने गर्भ धारण किये। उसके छह पुत्रों को देवों ने अलका नाम की एक सेठानी के घर सुरक्षित पहुँचा दिया। फिर सातवें पुत्र (कृष्ण) का जन्म हुआ। वसुदेव उसे गुप्त रूप से ले जाकर गोकुल में नन्द और यशोदा को सौंप आये और उनके जो उसी समय पुत्री हुई थी उसे लाकर देवकी को सौंप दिया। कंस ने जब इस पुत्री को देखा तो सोचा, यह कन्या मुझे नहीं मार सकती है, हाँ, इसका कोई राजकुमार पति मेरा शत्रु हो सकता है, अतः कंस ने उस कन्या को मारा नहीं, मात्र उसकी नाक चपटी कर दी।
इधर गोकुल में कृष्ण बड़े होते रहे। एक बार किसी निमित्तज्ञानी ने कंस को बताया कि आपका शत्रु किसी नगरी में बड़ा हो रहा है, आप उसे खोजकर मार डालिए। कंस ने अपने पूर्वजन्म में सात देवियाँ सिद्ध की थीं। उसने यह कार्य उन देवियों को सौंपा। परन्तु सातों देवियाँ असफल हो गयीं।
एक बार मथुरा में तीन रत्न उत्पन्न हुए-नागशैय्या, पंचायन शंख और धनुष। इन्हें देखकर फिर एक निमित्तज्ञानी ने कंस को बताया कि जो इस नागशैय्या पर आरोहण करे, धनुष चढ़ावे और शंख बजावे, वही आपका शत्रु है। कंस ने सर्वत्र घोषणा करवा दी कि जो ऐसा करेगा उसे वह अपनी पुत्री अपराजिता प्रदान करेगा। देश-देश के पराक्रमी आये, पर ऐसा कोई न कर सका।
एक बार कंस ने गोकुल के ग्वालों को यह कठिन आज्ञा भेजी कि वे नागद्रह सरोवर में से सहस्रदलकमल लेकर आवें। सभी ग्वाले बड़े चिन्तित हुए,
हरिवंशपुराण :: 49