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________________ क्योंकि इस सरोवर में एक विकराल नागकुमार देव रहता था । कृष्ण इस सरोवर में से नागकुमार का दमन कर सहज ही सहस्रदलकमल को लाने में सफल हो गये। इसके बाद अनेक ग्वाले भी ढेरों कमल ले आये और गाँठें बाँधकर कंस के पास भेज दीं। यह देखकर कंस बहुत क्रुद्ध हुआ । उसने गोकुल के सभी ग्वालों को मन में दुरभिप्राय रखकर मल्लयुद्ध हेतु बुलाया । वसुदेव ने ये सारे समाचार अपने भाइयों के पास भेज दिए । वे सभी शीघ्र मथुरा आ पहुँचे । सबके समक्ष घमासान मल्लयुद्ध हुआ । चाडूर व मुष्टि जैसे बलवान मल्ल और कंस लीलामात्र ही कृष्ण के हाथों मारे गये । कंस की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी जीवद्यशा ने अपने पिता जरासन्ध को नाना प्रकार से यादवों के विरुद्ध भड़काया । जरासन्ध भड़क गया । उसने अपने पराक्रमी पुत्र कालयवन को यादवों को मारने के लिए भेजा, परन्तु वह डरकर भाग गया। इसके बाद जरासन्ध ने अपने भाई अपराजित को भेजा । वह कृष्ण के हाथों मारा गया। इससे जरासन्ध अत्यन्त क्रुद्ध होकर स्वयं ही यादवों से युद्ध करने आया। यादवों ने अभी युद्ध उचित नहीं समझा, अतः वे मथुरा छोड़कर पश्चिम दिशा की ओर चले गये थे । जरासन्ध को मथुरा जलती हुई मिली। आग के पास एक वृद्धा बैठी रो रही थी जो वस्तुतः एक देवी थी । जरासन्ध ने उससे आग का और उसके रोने का कारण पूछा । वृद्धारूपिणी देवी बोली - "राजगृह के पराक्रमी, उपकारी और सत्यवादी राजा जरासन्ध के भय से सभी यादव अग्निप्रवेश कर चले गये हैं और मैं उनकी बहुत पुरानी दासी हूँ, इसलिए रो रही हूँ।" जरासन्ध प्रसन्न होकर लौट गया । सभी यादव देव निर्मित द्वारावती में निवास करने लगे । यहाँ बलदेव और वासुदेव का प्रभाव खूब जमा । एक दिन यादवों की सभा में नारदजी आए । वार्तालाप के बाद वे रनिवास में गये। वहाँ सत्यभामा शृंगार में व्यस्त होने से इनका आगमन न जान सकी, अतः प्रणाम न कर सकी। नारदजी नाराज हो गये । उन्होंने उसे दुखी करने के लिए उससे सुन्दर सौत लाने का निर्णय किया । बहुत खोजने के उपरान्त उन्हें कुन्दनपुर के राजा भीष्म की पुत्री रुक्मिणी पसन्द आई। उन्होंने कृष्ण के समक्ष रुक्मिणी के रूप-सौन्दर्य का वर्णन किया । रुक्मिणी भी अपनी बुआ के माध्यम से श्रीकृष्ण को चाहने लगी थी, यद्यपि उसकी सगाई चेदि नगर के राजा शिशुपाल से हो गयी थी, तथापि उसने स्वयं ही श्रीकृष्ण को पत्र लिखकर अपना मनोभाव व्यक्त किया। श्रीकृष्ण ने पत्र में निर्धारित कार्यक्रमानुसार रुक्मिणी का हरण कर लिया। शिशुपाल श्रीकृष्ण से युद्ध करके मारा गया । कृष्ण 50 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय ७
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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