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________________ आठवाँ नारायण और राम को आठवाँ बलभद्र स्वीकारते हैं। लक्ष्मण पुनः रावण को सन्धि कर सीता वापस करने को कहते हैं, परन्तु रावण के इनकार करने पर लक्ष्मण चक्ररत्न चलाकर रावण को मार देते हैं और अन्य राजा, प्रजा को अभयदान देते हैं। समस्त लंका में शोक छा जाता है। राम-विभीषण, मन्दोदरी और कुम्भकर्ण आदि को सान्त्वना देते हैं और रावण का दाह-संस्कार करते हैं। उसी दिन अनन्तवीर्य नामक मुनिराज को लंका में केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है। देवों द्वारा उनका केवलज्ञान महोत्सव किया जाता है। इन्द्रजीत, मेघवाहन, कुम्भकर्ण और मधु आदि निर्ग्रन्थ दीक्षा लेते हैं। मन्दोदरी और चन्द्रनखा आदि सभी आर्यिकाव्रत ग्रहण कर लेती हैं। राम-लक्ष्मण महावैभव के साथ लंका में प्रवेश करते हैं। सर्वप्रथम सीता के पास जाते हैं। राम, लक्ष्मण और सीता का समागम होता है। देवगण आकाश से पुष्पांजलि तथा गन्धोदक की वर्षा करते हैं। तीनों महल में प्रवेश कर शान्तिनाथ जिनालय में भगवान की स्तुति वन्दन करते हैं। विभीषण को लंका का राजा घोषित कर छह वर्ष तक राम, लक्ष्मण और सीता अनेक विवाहित स्त्रियों और अनेक राजाओं के साथ सुखपूर्वक रहते हैं। अन्त में नारद द्वारा अपनी माताओं के दुख का समाचार सुन राम, लक्ष्मण और सीता आदि पुष्पक विमान में आरूढ़ हो अयोध्या के लिए प्रस्थान करते हैं। अयोध्या के समीप ही भरत आदि बड़े हर्ष के साथ उनका स्वागत करते हैं। रामसुग्रीव, हनुमान, विभीषण और भामंडल आदि का सभी से परिचय कराते हैं। कौशल्या आदि चारों माताएँ राम-लक्ष्मण और सीता का आलिंगन कर प्रसन्न होती हैं। समस्त अयोध्यापुरी हर्षमय हो जाती है। भोगोपभोग से परिपूर्ण भरत का वैराग्य प्रकृष्ट सीमा को प्राप्त होता है। राम-लक्ष्मणादि ने उन्हें बहुत रोकना चाहा, परन्तु वह सफल नहीं हुए। उसी समय त्रिलोकमंडन हाथी बिगड़कर नगर में उपद्रव करता है। अन्त में भरत के दर्शन कर वह शान्त हो जाता है। __ अयोध्या में देशभूषण केवली का आगमन होता है। उनके मुख से अपना और हाथी का पूर्वभव सुनकर भरत को पूर्ण वैराग्य होता है और वे उन्हीं के पास दीक्षा ले लेते हैं । भरत के साथ एक हजार राजा और कैकयादि तीन सौ स्त्रियाँ भी दीक्षा लेती हैं। त्रिलोकमंडन हाथी भी समाधि धारण कर स्वर्ग में देव होता है। भरत मुनि भी अष्टकर्मों का क्षय कर निर्वाण को प्राप्त होते हैं। 40 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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