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रावण अक्षौहिणी सेना के साथ लंका से बाहर निकलकर राम के साथ युद्ध प्रारम्भ कर देता है । सर्वप्रथम रावण के सामन्त हस्त, प्रहस्त, वानरवंशी नल और नील से युद्ध में मारे जाते हैं । अनेक राजा भी युद्ध में मारे जाते हैं। तभी रामलक्ष्मण को दिव्यास्त्र तथा सिंहवाहिनी और गरुड़वाहिनी विद्याओं की प्राप्ति होती है, जिनके प्रभाव से वह सुग्रीव और भामंडल को नागपाश से मुक्त कर देते हैं । विभीषण और रावण का पुनः वाक्युद्ध होता है, जिससे क्रोधित होकर रावण भयानक शक्ति चलाता है, जिसके लगने से लक्ष्मण मूर्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़ते हैं । लक्ष्मण की अवस्था देख राम विलाप करने लगते हैं । अपरिचित प्रतिचन्द्र विद्याधर लक्ष्मण की शक्ति निकालने का उपाय बताता है और विशल्या के पूर्वभवों का परिचय देता है। तब राम, हनुमान, भामंडल तथा अंगद को तत्काल अयोध्या भेजते हैं । भरत की माता स्वयं राजा द्रोणमेघ के पास जाकर उनकी पुत्री विशल्या को लंका भेजने की व्यवस्था करती है । विशल्या के लंका पहुँचते ही लक्ष्मण के वक्षःस्थल से शक्ति निकल जाती है, राम की सेना में खुशी छा जाती है और विशल्या का लक्ष्मण के साथ विवाह हो जाता है । लक्ष्मण की शक्ति निकल जाने के समाचार से रावण के मन्त्रिजन उसे सन्धि करने के लिए समझाते हैं, परन्तु रावण मद के कारण नहीं मानता और बहुरूपिणी विद्या सिद्ध करने के लिए शान्तिनाथ जिनालय में भक्ति से जिनेन्द्र भगवान की पूजा करता है । नन्दीश्वर पर्व आ जाने से युद्ध भी नहीं होता है, सभी लोग शान्ति से जिनालयों में पूजन करते हैं ।
रावण को विद्या सिद्ध हो गयी तो वह अजेय हो जाएगा - ऐसा विचार कर पहले विद्याधर कुमार विघ्न डालने जाते हैं, परन्तु राम की स्वीकृति न होने से वापस आ जाते हैं। बाद में अंगद, स्कन्द, नील लंका जाकर उपद्रव करते हैं, परन्तु रावण को विद्या सिद्ध हो जाती है।
रावण विद्यासिद्धि उपरान्त पुनः सीता के पास जाकर उसे आकृष्ट करता है, परन्तु सीता के पतिव्रता धर्म के कारण स्वयं ही लज्जित होता है । मद में चूर रावण पुनः युद्ध करने का निश्चय करता है ।
रावण बहुरूपिणी विद्या के द्वारा निर्मित हजार हाथियों से जुते ऐन्द्र नामक रथ पर सवार होकर सेनासहित आगे बढ़ता है । लक्ष्मण और रावण के बीच वीरसंवाद होता है । दस दिनों तक दोनों का भीषण युद्ध होता है । अन्त में क्रोधी रावण लक्ष्मण पर चक्ररत्न चलाता है, चक्र लक्ष्मण की तीन प्रदक्षिणाएँ देकर उसके हाथ में आ जाता है । समस्त राजागण लक्ष्मण के चक्ररत्न प्राप्त होते ही उन्हें
पद्मपुराण :: 39