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रावण विजययात्रा में अनन्तबल केवली का धर्मोपदेश सुनकर "जो परस्त्री मुझे नहीं चाहेगी मैं उसे ग्रहण नहीं करूँगा " यह दृढ़ नियम लेता है। उसके बाद रावण इन्द्र को पराजित करता है । बालि का अहंकार रावण के आक्रमण से वैराग्य रूप में परिणत हो जाता है, जिससे बालि विरक्त होकर दिगम्बरी दीक्षा धारण करता है, और सुग्रीव को राजा बनाता है ।
आदित्यपुर के राजा प्रह्लाद और रानी केतुमती के पवनंजय नाम का पुत्र था। जिसका विवाह राजा महेन्द्र और रानी हृदयवेगा की पुत्री अंजना से होता है । मिश्रकेशी दूती के बकवाद के कारण पवनंजय अंजना को विवाहोपरान्त ही छोड़ देते हैं, 22 वर्षों तक अंजना पति के वियोग में कष्ट सहती है । एक दिन रावण और वरुण के युद्ध में पवनंजय जाते हैं, और मार्ग में मानसरोवर पर चकवी की विरहदशा को देखकर अंजना का स्मरण हो जाता है, जिससे वह प्रहसित मित्र की सहायता से गुप्तरूप से अंजना से मिल आते हैं।
कुछ समय बाद अंजना के गर्भ चिह्न प्रकट होने पर सास केतुमती उन्हें कलंकित कहकर घर से निकाल देती है । पिता के घर भी आश्रय नहीं मिलने के कारण अंजना अपनी सखी के साथ पर्वत की गुफा में रहती है। वहीं पर अंजना को पुत्र उत्पन्न होता है। तभी अंजना के मामा प्रतिसूर्य विद्याधर वहाँ आते हैं, और अंजना को पुत्र सहित विमान में बैठाकर अपने नगर की ओर चल देते हैं, परन्तु बालक विमान से नीचे गिर जाता है, और शिला चूर-चूर हो जाती है इसलिए बालक का नाम 'श्रीशैल' और हनुरूह नगर में संस्कार सम्पन्न होने के कारण 'हनुमान' नाम रखा जाता है । वरुण के युद्ध से लौटकर जब पवनंजय घर आते हैं तब अंजना को न देखकर दुखी हो जाते हैं। लम्बे समय तक खोज करने के बाद विद्याधर की मदद से अंजना और पवनंजय का मिलाप होता है ।
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रावण की बहन चन्द्रनखा की 'अनंगपुष्पा' नाम की कन्या से हनुमान का विवाह होता है। इसके साथ किष्कुपुर के राजा नल की हरिमालिनी पुत्री के साथ भी हनुमान का विवाह होता है । विद्याधरों की सौ कन्याओं से विवाह करने के बाद हनुमान की एक हजार से भी अधिक स्त्रियाँ हो जाती हैं, यह ' श्रीशैल' पर्वत पर ही निवास करते हैं ।
पद्मपुराण के बीस और इक्कीस पर्व में चौबीस तीर्थंकरों का तथा उनके वंश का वर्णन, इक्ष्वाकु वंश के प्रारम्भ का वर्णन और राजा अनरण्य आदि का वर्णन किया गया है।
इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न राजा रघु के अयोध्या में अरण्य नाम का पुत्र और
34 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय