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( 3 ) भूगोल, इतिहास, राजनीति, संस्कार और परम्परा आदि अनेक दृष्टियों से भी यह पद्मपुराण ग्रन्थ बहुत महत्त्वपूर्ण है । ग्रन्थ सम्बन्धी कुछ तथ्य / निष्कर्ष हैं, जिन्हें श्रावक सावधानी से पढ़ें। जैसे
1. रविषेणाचार्य के मतानुसार वानर एक मानव जाति विशेष है । जिन विद्याधर राजाओं ने अपना ध्वज चिह्न वानर अपना लिया था, वे विद्याधर राजा वानरवंशी कहलाने लगे थे । वानर पशु नहीं हैं, मनुष्य हैं।
2. रविषेणाचार्य ने राक्षसद्वीप वासियों को राक्षसवंशी कहा है। विजयार्द्ध के पश्चिम में एक द्वीप में विद्याधर राजाओं का निवास था, उस द्वीप का नाम राक्षस द्वीप था । अतः वहाँ के निवासी राक्षस कहलाने लगे थे । वे वास्तव में राक्षस नहीं थे, मनुष्य थे, इसलिए रावण को वस्तुतः राक्षस मानना गलत है। वे कला विद्या में निपुण, शास्त्रों के पारंगत और धर्मप्रिय राजा थे । वे भविष्य में जैन धर्म के तीर्थंकर होंगे।
3. सीता के जन्म, अग्निपरीक्षा और समाधिमरण आदि के बारे में भी अलग विशेष मत हैं । सुधी पाठकगण स्वविवेक से इन मतों पर चिन्तन करें।
ग्रन्थ की कथा
राजा श्रेणिक भगवान महावीर के समवशरण में जाते हैं और गौतम स्वामी से रामकथा सुनने की इच्छा प्रकट करते हैं । गौतमस्वामी नाभिराय और भगवान आदिनाथ, भरत और बाहुबली का वर्णन करते हुए चार महावंशों (इक्ष्वाकुवंश, ऋषिवंश, विद्याधरों का वंश तथा हरिवंश) का वर्णन करते हैं। भगवान अजितनाथ का वर्णन, सगर चक्रवर्ती, पूर्णघन, सुलोचन, सहस्रनयन, मेघवाहन, राक्षसवंश और वानरवंश का विस्तार से वर्णन करते हैं । जिसका सार प्रस्तुत है—
राक्षस वंश के राजा रत्नश्रवा तथा केकसी के चार सन्तान थीं - 1. रावण, 2. कुम्भकर्ण, 3. चन्द्रनखा 4. विभीषण । जब रत्नश्रवा ने पहले अपने पुत्र रावण को देखा था, तब शिशु जो हार पहने हुए था उसमें उसे रावण के दस सिर दिखे, इसीलिए उसका नाम दशानन रखा गया। रावण आदि भाई अनेक विद्याएँ सिद्ध करते हैं और रावण मन्दोदरी तथा 6000 अन्य कन्याओं के साथ विवाह करता है और दिग्विजय में बहुत से राजाओं को परास्त करता है।
किष्किन्धा नगर के राजा सूर्यरज और चन्द्रमालिनी रानी से बाली और सुग्रीव नाम के दो पुत्र और सूर्यरज के छोटे भाई ऋक्षरज और हरिकान्ता रानी से नल और नील दो पुत्र उत्पन्न होते हैं ।
पद्मपुराण :: 33