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प्रतिक्रमण
प्रदेश
प्रमेय
प्रमाण
प्ररूपणा
प्रातिहार्य
प्रायश्चित्त
प्रासुक
हरात्मा
बहुमान
बीजाक्षर
बोधिदुर्लभ
भव्यप्राणी
भावना
भेदविज्ञान मन:पर्ययज्ञान
ममत्व
मतिज्ञान
मसि
मार्गणास्थान
मिथ्याचारित्र
मिथ्यात्व
मिथ्यादर्शन
मिथ्याज्ञान
मूर्तिक
युक्ति
योग
: भूतकाल के दोषों की शुद्धि करना ।
: आकार ।
: पदार्थ या प्रमाण का विषय | दुनिया के सभी पदार्थ प्रमेय हैं, क्योंकि वह प्रमाण के द्वारा जाने जाते हैं।
: सम्यग्ज्ञान ।
: वर्णन करने की शैली ।
: प्रतिष्ठा के प्रतीक चिह्न |
: मन शुद्ध करने की क्रिया । अपराधों से दूषित हुए मन
को शुद्ध करने का उपाय ।
: सर्वदा जीव रहित ।
: शरीर, मकान एवं परिवार आदि परपदार्थों को अपना
माननेवाला ।
: सम्मान ।
: संक्षिप्त गूढ़ अक्षर ।
: आत्मज्ञान प्राप्ति मुश्किल है ।
: वे प्राणी जिन्हें शीघ्र ही सम्यग्दर्शन प्राप्त होनेवाला है । : बार-बार चिन्तन करना।
: दो विभिन्न पदार्थों को भिन्न-भिन्न जानना एवं समझना । : दूसरों के मन में स्थित पदार्थों का प्रत्यक्ष ज्ञान ।
: परपदार्थों के साथ मोह या अपनापन रखना ।
: इन्द्रियों और मन से होनेवाला ज्ञान ।
: लेखनकला।
वे चीजें जिनमें जीवों को खोजा जाए।
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: मोक्षमार्ग एवं नैतिकता के विपरीत आचरण ।
: उल्टा ज्ञान - श्रद्धान ।
: जीव आदि पदार्थों के बारे में गलत मान्यता ।
: वस्तु के स्वरूप को गलत जानना ।
: जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण पाया जाए। : प्रामाणिक बात ।
: ध्यान, मन, वचन, काय की एकाग्रता ।
278 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय