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________________ निन्दा करना : अपने दोषों की निन्दा करना। निबद्ध करना : बाँधना, जोड़ना। निमित्त-नैमित्तिक संबंध : जब भी कोई कार्य होता है तो उसमें एक वस्तु तो स्वयं कार्य करती है और दूसरी उसमें सहायक होती है। इन दोनों के सम्बन्धको निमित्त-नैमित्तिक-सम्बन्ध कहते हैं। निर्विकल्प समाधि : आत्मानुभूति होना, जिसमें राग-द्वेष का भाव नहीं होता है। निश्चय नय निश्चय मोक्षमार्ग नैष्ठिक श्रावक नोकर्म पंच इन्द्रिय पर्याय पर्यंकासन पर्यायार्थिक नय परद्रव्य परपदार्थ परभाव परिणमन परिग्रह परीषह पारणा पाक्षिक श्रावक पुरुषार्थ पूरण-गलन प्रकृतियाँ प्रत्याहार :: वस्तु के शुद्ध स्वरूप को जानना, कहना। : आत्मा का ज्ञान, श्रद्धन एवं आचरण करना। :: जो धर्म का निष्ठापूर्वक निर्वाह करता है। : स्त्री, पुत्र, मकान आदि बाह्य पदार्थ जिनको ये जीव अपना मानता है। ': स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र। अर्थात् त्वचा, जीभ, नाक, आँख और कान। : वह अवस्था जिसका निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। : पद्मासन। : पर्याय के अंश को जानना पर्यायार्थिक नय है। : दूसरे द्रव्य। जैसे- शरीर, मकान, दूसरे जीव आदि। : दूसरे पदार्थ। : दूसरे का स्वभाव। : परिवर्तन। : परपदार्थों का संचय करना। : कष्ट सहन करना। : उपवास के बाद दूसरे दिन शुद्ध भोजन करना। : जो अभ्यास द्वारा श्रावक धर्म का पालन करता है। : प्रयत्न। : मिलना-बिछुड़ना। : स्वभाव। : ध्यान की प्रारम्भिक अवस्था। : भविष्यकाल के दोषों की शुद्धि। प्रत्याख्यान सरल-शब्दावली :: 277
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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