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18. धर्मध्यान का फल 19. शुक्लध्यान का फल
1. मंगलाचरण सबसे पहले मंगलाचरण में 24 तीर्थंकरों को नमस्कार किया गया है। ध्यान की सिद्धि के लिए गौतम गणधर को नमस्कार करते हुए ज्ञानार्णव ग्रन्थ लिखने की प्रतिज्ञा की गयी है। पश्चात् समन्तभद्र, पूज्यपाद एवं जिनसेन आदि कवियों की प्रशंसा की गयी है। इसके बाद आचार्य शुभचन्द्र ने भावना प्रकट की है कि बिना किसी ख्यातिलाभ की इच्छा से और कवित्व के अभिमान से रहित होकर मैं इस ग्रन्थ की रचना कर रहा हूँ।
2. बारह भावना इस अध्याय में 195 पद्य हैं । अनित्य, अशरण आदि बारह भावनाओं का चिन्तन इस अध्याय में किया है। इनके निरन्तर चिन्तन से प्राणी चेतन और अचेतन आदि की भिन्नता को जान लेता है। वैराग्य और संसार की नश्वरता को जानकर रागद्वेष न करता हुआ समताभाव प्राप्त करता है। इस अध्याय में इन वैराग्यजननी बारह भावनाओं का बहुत ही सुन्दर वर्णन है।
3. ध्यान का लक्षण
इस अध्याय में 36 पद्य हैं। इसमें बताया है कि इस संसार में मनुष्य पर्याय का प्राप्त होना कठिन है। उससे भी दुर्लभ है धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-इन चारों पुरुषार्थों को प्राप्त करना। जो मनुष्य मोक्षमार्ग में अग्रसर है, वही आत्मा को प्राप्त कर सकता है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ही मुक्ति के कारण हैं
और ध्यान रत्नत्रय की सिद्धि का हेतु है। कर्मों का क्षय ध्यान के बिना सम्भव नहीं है। चित्त की चंचलता ध्यान के द्वारा ही दूर की जा सकती है और उपयोग को स्थिर किया जा सकता है। काम-भोगों की आसक्ति को दूर करने का साधन भी आत्मध्यान ही है। इस प्रकार इस अध्याय में ध्यान का लक्षण समझाया है।
4. ध्याता के गुण-दोष इस अध्याय में ध्यान के स्वरूप का वर्णन आया है। इसमें 62 पद्य हैं। ध्यान के चार भेद बतलाए हैं-आर्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल ध्यान । इसमें ध्यान करनेवाला
ज्ञानार्णव :: 261