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ग्रन्थ का महत्त्व 1. 42 अधिकारों में विभक्त यह ग्रन्थ वास्तव में ज्ञान का समुद्र ही है। इस
ग्रन्थ में ज्ञान, ध्यान, आचार, सिद्धान्त, अध्यात्म और वैराग्य आदि अनेक विषयों का वर्णन किया गया है। 2. यह ग्रन्थ सांसारिक यात्रा से आध्यात्मिक यात्रा की ओर ले जानेवाला ग्रन्थ
है। योग द्वारा शरीर-शुद्धि, प्राणायाम द्वारा मनशुद्धि और शुक्लध्यान द्वारा
पूर्ण मुक्ति अर्थात् मोक्ष का मार्ग बताया है। 3. यह ग्रन्थ महाकाव्य के समान है। महाकाव्य के गुणों को समाहित करनेवाला
यह ग्रन्थ है। 4. यह ग्रन्थ ध्यान एवं योग विषय पर आधारित सैकड़ों ग्रन्थों का आधार है। ___ इस ग्रन्थ में ध्यान एवं योग आदि का बहुत विस्तार से वर्णन किया है। 5. यह ध्यान के ग्रन्थों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय और प्रचलित ग्रन्थ है। 6. इस ग्रन्थ की भाषा सरल एवं सुबोध है। कविता मधुर व आकर्षक है। 7. ग्रन्थ में ध्यान के भेदों का वर्णन इस प्रकार है
ध्यान
अप्रशस्त ध्यान (संसार में भटकने का कारण)
प्रशस्त ध्यान (मुक्ति का कारण)
आर्तध्यान
रौद्रध्यान
धर्मध्यान
शुक्ल ध्यान
इष्ट वियोग
हिंसानन्द अनिष्ट संयोग मृषानन्द वेदना (पीड़ा) चौर्यानन्द भोगाकांक्षा (इच्छा) संरक्षणानन्द
आज्ञाविचय अपायविचय विपाक संस्थान
विचय विचय
पिण्डस्थ पदस्थ रूपस्थ रूपातीत
8. आज से लगभग 400-500 साल पहले भी इस ग्रन्थ की अनेक गद्य-पद्य
टीकाएँ मिलती थीं। यथा• तत्त्वत्रय प्रकाशिनी : आचार्य श्रुतसागर सूरि
ज्ञानार्णव :: 259