________________
ज्ञानार्णव
ग्रन्थ के नाम का अर्थ इस ग्रन्थ का नाम है-ज्ञानार्णव। इसके अन्य नाम 'ध्यानशास्त्र' और 'योगप्रदीपाधिकार' भी हैं।
___1. 'ज्ञानार्णव' शब्द का अर्थ है-ज्ञान का समुद्र । इस ग्रन्थ में ज्ञान-ध्यान के अनेक विषयों का वर्णन किया गया है, इस ग्रन्थ के अध्ययन से पाठक को अनेक विषयों का ज्ञान प्राप्त हो सकता है, अत: ज्ञानार्णव को ज्ञान का समुद्र कहा गया है।
2. ध्यानशास्त्र-इस ग्रन्थ को ध्यानशास्त्र भी कहते हैं, क्योंकि इस ग्रन्थ में प्रमुखता से ध्यान का वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ को आधार बनाकर ही ध्यानयोग पर अनेक ग्रन्थ लिखे गये हैं।
3. योगप्रदीपाधिकार-योग और ध्यान-ये दोनों समानार्थक शब्द हैं, इसलिए इसे योगप्रदीपाधिकार भी कहा जाता है।
ग्रन्थकार का परिचय इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना आचार्य शुभचन्द्र ने की है। इनका समय विक्रम की 11वीं शती का माना जाता है। ग्रन्थ में कहीं भी आचार्य शुभचन्द्र का परिचय नहीं मिलता है। इस ग्रन्थ के अध्ययन से ज्ञात होता है कि आचार्य शुभचन्द्र बहुश्रुत विद्वान एवं प्रतिभा सम्पन्न कवि भी रहे हैं। किंवदन्ती है कि उन्होंने अपने भाई भर्तृहरि को मुनिमार्ग में दृढ़ करने और सच्चे योग का ज्ञान कराने के लिए इस ग्रन्थ की रचना की है।
258 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय