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नियमसार
ग्रन्थ के नाम का अर्थ नियमसार का अर्थ है-नियम से करने योग्य कार्य अर्थात् सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्र। 'नियम' का अर्थ यहाँ 'दर्शन-ज्ञान-चारित्र' लिया है। 'सार' अर्थात् सम्यक्, सही। इस प्रकार नियमसार' का अर्थ हुआ सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र'। ग्रन्थकार का परिचय आचार्य कुन्दकुन्द के द्वारा रचित महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों में से एक ग्रन्थ 'नियमसार' भी है। आचार्य कुन्दकुन्द का परिचय हम पूर्व में दे चुके हैं। (देखें पृष्ठ 229) ग्रन्थ का महत्त्व
1. इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह ग्रन्थ किसी अन्य के लिए ___ नहीं लिखा गया है, अपितु इसे आचार्य कुन्दकुन्द ने स्वयं अपने लिए
लिखा है। 2. इस ग्रन्थ में जहाँ एक ओर परम वीतरागी सन्त की पावन भावना का प्रवाह
है, वहीं दूसरी ओर पुरुषार्थ का प्रबल वेग भी है। यह एक अनुपम बेजोड़
कृति है। 3. यह ग्रन्थ वीतरागी सन्त आचार्य कुन्दकुन्द की महान आध्यात्मिक कृति है। इसमें कुन्दकुन्द का अन्तरंग व्यक्त हुआ है। नियमसार ग्रन्थ आचार्य कुन्दकुन्द
का हृदय है। 4. इस ग्रन्थ के टीकाकार श्री पद्मप्रभुमलूधारिदेव' इसे 'भगवतशास्त्र' कहते हैं
तथा इसके अध्ययन का फल शाश्वत सुख की प्राप्ति है-ऐसा कहते हैं। 5. यह नियमसार ग्रन्थ समस्त आगम के अर्थसमूह का प्रतिपादन करने में 250 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय