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________________ समर्थ है अर्थात् समस्त आगम का ज्ञान देने में समर्थ है। 6. इस महनीय ग्रन्थ में पंचास्तिकाय, षड्द्रव्य, साततत्त्व, नौ पदार्थ के विषय विवेचन के साथ-साथ दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार-इन पाँच आचारों का विस्तृत विवेचन है। 7. यह पूर्ण आध्यात्मिक ग्रन्थ है। ग्रन्थ के अधिकारों के नाम से ही इस ग्रन्थ का आध्यात्मिक विषय झलक रहा है। जैसे-निश्चय प्रतिक्रमण, निश्चय प्रत्याख्यान, निश्चय प्रायश्चित्त, परम आलोचना, परम-भक्ति और परमसमाधि आदि । प्रायः किसी भी ग्रन्थ में इस प्रकार के अधिकार नहीं मिलते हैं। अधिकारों के नाम देखकर ही भव्य जीव एक बार इसका स्वाध्याय करने के लिए अवश्य पुरुषार्थ करेंगे। 8. जिस प्रकार कोई महापराक्रमी पुरुष वन में जाकर सिंहनी का दूध दुह लाता है, उसी प्रकार आत्मपराक्रमी आचार्य कुन्दकुन्द ने वन में रहकर सिद्ध भगवन्तों से बातें की हैं और अनन्त सिद्ध भगवन्त किस प्रकार सिद्धि को प्राप्त हुए हैं, उनका इतिहास इस ग्रन्थ में भर दिया है। 9. वास्तव में परमार्थ सत्य का प्रतिपादक यह ग्रन्थ नियमसार परमागम ही है। ग्रन्थ का मुख्य विषय नियमसार ग्रन्थ शौरसेनी प्राकृत भाषा का उच्चकोटि का महान ग्रन्थ है। इसमें 12 अध्याय हैं और 187 गाथाएँ हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से यह ग्रन्थ बहुत महत्त्वपूर्ण है। चूँकि ग्रन्थ का मूल विषय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र है और इन विषयों का वर्णन पूर्व में विस्तार से कर चुके हैं, अतः यहाँ संक्षेप में ग्रन्थ-परिचय दिया जा रहा है। 1. जीव अधिकार (गाथा 1-19 तक) सबसे पहले मंगलाचरण में अनन्त चतुष्टय सहित भगवान महावीर को नमस्कार किया गया है। उसके बाद केवली तथा श्रुतकेवलियों ने जो नियमसार कहा है, आचार्य उसे कहने की प्रतिज्ञा करते हैं। आचार्य ने इस अधिकार में मोक्षमार्ग और मोक्षमार्ग का फल बताया है। उसके बाद जीव की स्वभाव पर्याय, विभाव पर्याय, जीव की चार गतियाँ, जीव के कर्तृत्व-भोक्तृत्व के प्रकार का कथन किया है। संसारी जीव का वर्णन करते हुए जीव के शुद्ध रूप-मुक्त जीव का कथन किया है। नियमसार :: 251
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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