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श्रमणों के लिए लौकिक जनों के सम्पर्क में नहीं रहने का उपदेश देते हैं कि जो जिनसूत्रों के मर्म को जानता है, जिसकी कषायें नष्ट हो गयी हैं, जो तप में भी श्रेष्ठ है, वह यदि लौकिक जनों के संसर्ग को नहीं छोड़ता है तो वह संयमी नहीं है।
ग्रन्थ की अन्तिम पाँच गाथाएँ पंचरत्न के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनमें मुनिराजों को ही मोक्षतत्त्व और मोक्ष का साधन तत्त्व कहा है। जो मुनिराज वस्तु स्वरूप के यथार्थ ज्ञाता हैं और आत्मानुभवी हैं, वे शुद्धोपयोगी मुनि ही मोक्षतत्त्व हैं, वे ही मोक्ष के साधन हैं।
अन्त में आचार्य कहते हैं कि 'जो व्यक्ति इस प्रवचनसार ग्रन्थ का भलीभाँति अध्ययन करेगा, वह प्रवचन के सार शुद्धात्मा को अवश्य प्राप्त करेगा।' इस प्रकार प्रवचनसार ग्रन्थ बहुत ही अद्वितीय है। यह मात्र विद्वानों के अध्ययन की वस्तु नहीं है, अपितु इसका गहराई से अध्ययन करना प्रत्येक आत्मार्थी का प्राथमिक कर्तव्य है।
प्रवचनसार :: 249