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________________ संचालन तथा भोगोपभोग करते हुए अपना जीवन व्यतीत करते हैं। एक दिन शयनागार में शयन करते हुए दोनों की आकस्मिक मृत्यु हो जाती है। पात्रदान के प्रभाव से दोनों ही जम्बूद्वीप के विदेह क्षेत्र में स्थित उत्तर कुरु में आर्य-आर्या हो जाते हैं। ___ आयु के अन्त समय में दो चारण ऋद्धिधारी मुनिराज के दर्शन और उपदेश से दोनों आर्य आर्या विदेह क्षेत्र से निकलकर ऐशान स्वर्ग में देव हुए। वज्रजंघ श्रीधर नाम का देव होता है। श्रीधर देव आयु पूर्ण करके स्वर्ग से च्युत होकर जम्बूद्वीप के पूर्वविदेह क्षेत्र में महावत्स देश के सुसीमा नगर में सुदृष्टि राजा की सुन्दरनन्दा रानी से सुविधि नाम का पुत्र हुआ। सुविधि ने पिता की आज्ञा से राज्य ग्रहण किया तथा अभयघोष चक्रवर्ती की पुत्री मनोरमा के साथ पाणिग्रहण किया। श्रीमती का जीव इन दोनों के केशव नाम का पुत्र हुआ। पुत्र प्रेम के कारण राजा सुविधि घर में ही श्रावक के व्रत पालन करते रहे, अन्त समय में दीक्षा लेकर समाधि के प्रभाव से सोलहवें स्वर्ग में इन्द्र हुए। केशव भी तपस्या के प्रभाव से उसी अच्युत स्वर्ग में प्रतीन्द्र हुआ। वज्रजंघ का जीव अच्युतेन्द्र स्वर्ग से निकलकर पुंडरीक नगरी में राजा वज्रसेन और रानी श्रीकान्ता के वज्रनाभि पुत्र हुआ। केशव का जीव भी उसी नगर में वैश्य दम्पती के धनदेव नाम का पुत्र हुआ। __महाराज वज्रसेन के दीक्षित हो जाने पर महाराज वज्रनाभि ने कुशलतापूर्वक राज्य संचालन किया। वज्रनाभि के आयुधगृह (युद्धशाला) में चक्ररत्न प्रकट हुआ। जिससे उन्होंने समस्त पृथ्वी को जीत लिया। धनदेव का जीव चक्रवर्ती की निधियों और रत्नों में गृहपति नाम का तेजस्वी रत्न हुआ। महाराज वज्रनाभि ने वज्रदन्त नामक पुत्र को राज्य सौंपकर अनेक राजाओं, पुत्रों, भाइयों और धनदेव के साथ दीक्षा ग्रहण की और दर्शनविशुद्धि आदि सोलह कारण भावनाओं का चिन्तवन कर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया और आयु के अन्त में संन्यास धारण किया। अन्त में सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र पद को प्राप्त हुआ। भगवान वृषभदेव चरित सन्धिकाल के समय इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में विजयार्ध पर्वत से दक्षिण की ओर मध्यम आर्य खंड में नाभिराज हुए। वे नाभिराज चौदह कुलकरों में अन्तिम महापुराण (आदिपुराण और उत्तरपुराण) :: 23
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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