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________________ कुलकर थे। उनकी मरुदेवी नामकी रानी थी। भगवान 'वृषभदेव' जन्म लेनेवाले हैं, इन्द्र ने ऐसा जानकर अयोध्यापुरी की रचना की, नाभिराज और मरुदेवी को बहुत ही भक्तिभाव से उस नगरी में प्रवेश कराया और उनकी पूजा-स्तुति की । गर्भ कल्याणक एक दिन मरुदेवी ने सोते समय जिनेन्द्रदेव के जन्म की सूचना देनेवाले तथा शुभ फल देनेवाले सोलह स्वप्न देखे और प्रातः काल नाभिराज से स्वप्नों का फल कर पर हर्ष को प्राप्त हुई । उसी समय श्री, ही आदि देवियाँ माता मरुदेवी की सेवा शुश्रूषा करने लगी । इन्द्रादि देव भी गर्भ का उत्सव मनाते हैं और नगरी में रत्नवृष्टि करते हैं । जन्म कल्याणक चैत्र कृष्ण नवमी के शुभ मुहूर्त्त में माता मरुदेवी ने मति, श्रुत और अवधिज्ञान से युक्त और तीनों लोकों के एकमात्र स्वामी, दैदीप्यमान पुत्र को जन्म दिया। उसी समय इन्द्र अयोध्या नगरी में सभी देवों के साथ आते हैं और भगवान की स्तुति करते हुए भगवान को गोद में लेकर ऐरावत हाथी पर आरूढ़ होकर सुमेरू पर्वत पर ले गये। वहाँ पांडुकवन के सुसज्जित अभिषेक मंडप के मध्य में पांडुक शिला पर जिनबालक को विराजमान किया। सौधर्म और ऐशान इन्द्र ने क्षीरसागर जल से भरे हुए 1008 कलशों द्वारा भगवान का अभिषेक किया । इन्द्राणी ने जिनबालक के शरीर में सुगन्धित द्रव्यों का लेप लगाकर भगवान की स्तुति करते सम्पूर्ण वैभव के साथ अयोध्यानगरी में प्रवेश कराकर तांडवनृत्य किया और भगवान का ‘वृषभ' नाम रखा और देव - बालकों को भगवान की सेवा में नियुक्त किया। इस प्रकार वे जिनेन्द्ररूपी चन्द्रमा नक्षत्रों के समान देवकुमारों के साथ क्रीड़ा करते हुए बालचन्द्रमा के समान धीरे-धीरे वृद्धि को प्राप्त होने लगे । पिता नाभिराज ने इन्द्र की सम्मति से कच्छ और महाकच्छ की बहनें यशस्वती और सुनन्दा से ऋषभदेव का विवाह किया। पिता की आज्ञा से राज्यपद ग्रहण कर ऋषभदेव ने प्रजा को अत्यन्त सन्तुष्ट किया । भरत का जन्म किसी दिन महादेवी यशस्वती ने सोते समय शुभ स्वप्न देखा। भगवान वृषभदेव से 24 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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