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________________ भगवान आदिनाथ के पूर्वभव का परिचय जम्बूद्वीप में मेरूपर्वत के विदेह क्षेत्र में एक गन्धिला नामक देश है, इसके मध्यभाग में विजयार्ध पर्वत के उत्तर में एक अलका नाम की श्रेष्ठ पुरी (नगरी) है। उस अलकापुरी का राजा अतिबल नाम का विद्याधर शूरवीर और शत्रु-समूह को जीतनेवाला था। उसकी मनोहरा नाम की रानी थी। उन दोनों के अतिशय भाग्यशाली महाबल नाम का पुत्र था। एक दिन महाराज अतिबल ने विषयभोगों से विरक्त होकर अपने बलशाली पुत्र महाबल को राज्य देकर दीक्षा ग्रहण कर ली। राजा महाबल दैव और पुरुषार्थ दोनों से सम्पन्न था। अनेक विद्याधरों का स्वामी राजा महाबल के चार मन्त्री महामति, सम्भिन्नमति, शतमति और स्वयंबुद्ध थे, जो महाबुद्धिमान, स्नेही और दीर्घदर्शी थे। उन चारों मन्त्रियों में स्वयंबुद्ध नामक मन्त्री शुद्ध सम्यग्दृष्टि था, बाकी तीन मन्त्री मिथ्यादृष्टि थे। ___ एक दिन महाबल ने अपनी आयु का क्षय निकट जानकर आष्टाह्निक पर्व पर विशेष महापूजा की और पुत्र को राज्य देकर विजयार्ध के सिद्धकूट पर्वत पर बाईस दिन की सल्लेखना धारण की। सल्लेखना के प्रभाव से राजा महाबल का जीव ऐशान स्वर्ग में श्रीप्रभ नाम के अतिशय सुन्दर विमान में बड़ी ऋद्धि का धारक ललितांग नाम का देव हुआ। इस देव की चार हजार देवियाँ तथा चार महादेवियाँ–स्वयंप्रभा, कनकप्रभा, कनकलता और विद्यल्लता थीं। आयु के छह माह बाकी रहने पर ललितांग देव ने अच्युत स्वर्ग में जिनप्रतिमाओं की पूजा की और पंचनमस्कार मन्त्र का जाप करते हुए स्वर्ग की आयु पूर्ण की। ललितांगदेव स्वर्ग से निकलकर जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में पुष्कलावती देश के उत्पलखेट नामक नगर में राजा वज्रबाहु और रानी वसुन्धरा के 'वज्रजंघ' नाम का पुत्र हुआ। उसकी स्वयंप्रभा देवी का जीव पुंडरीकिणी नगरी के राजा वज्रदन्त और लक्ष्मीमती रानी के श्रीमती' नाम से प्रसिद्ध पुत्री हुई। एक दिन यशोधरा गुरु के केवलज्ञान के महोत्सव के लिए जानेवाले देवों को देखकर श्रीमती को पूर्वभव का स्मरण हो गया और वह ललितांग देव का स्मरण कर दुखी हो गयी। पण्डिता धाय और राजा वज्रदन्त के प्रयासों द्वारा श्रीमती और वज्रजंघ का विवाह बड़े वैभव के साथ सम्पन्न हो गया। दोनों जिनालय में दर्शन करते हैं और धर्म, अर्थ और काम तीन वर्गों के अनुसार राज्य 22 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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