SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करने योग्य नहीं है। रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द पुद्गल द्रव्य में पाए जानेवाले गुण-पर्याय हैं और जीव उनसे भिन्न हैं; अतः ये जीव में होना सम्भव नहीं है। आत्मा भिन्न है, पुद्गल भिन्न है। आत्मा को राग-द्वेष-मोह-माया से मुक्त करके शुद्धोपयोगी बनाना है। 3. चरणानुयोगसूचकचूलिका या सम्यक्चारित्र अधिकार (गाथा 200 से 275 तक) इस अधिकार में चूलिका शब्द आया है। चूलिका शब्द का अर्थ है-'विशेष का व्याख्यान' या उक्त-अनुक्त अर्थ का संक्षिप्त व्याख्यान। चारित्र के धनी आचार्य कुन्दकुन्द सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान समझाने के बाद अपने शिष्यों को चारित्र धारण करने की प्रेरणा देने के लिए इस अधिकार की रचना करते हैं। इस अधिकार के प्रारम्भ में ही मंगलाचरण में वे कहते हैं कि यदि दुखों से मुक्त होना चाहते हो तो सिद्धों को नमस्कार कर शीघ्र ही श्रमणपना (मुनिधर्म) धारण कर लो। इस चरणानुयोग सूचक चूलिका में चार अधिकार हैं(1) आचरण अधिकार (2) मोक्षमार्ग अधिकार (3) शुभोपयोग अधिकार (4) पंचरत्न अधिकार इन अधिकारों में आचार्य कहते हैं कि मुनि बनो, पर सच्चे मुनि बनो। जीवन में बिलकुल मत भटको । मुनि बनने का जो मुख्य उद्देश्य है, उसे समझो। नग्न दिगम्बर मुनि बने बिना कोई मोक्ष नहीं जा सकता। दिगम्बर मुनि वही है, जो विधिपूर्वक घरवालों से आज्ञा लेकर यथाजात (जैसा जन्म हुआ था, वैसा ही पूर्ण नग्न दिगम्बर) होकर सभी परिग्रह को त्यागकर मुनि बनता है। आचार्य बार-बार एक ही बात समझाते हुए कहते हैं कि जिसके पास परिग्रह है, वह मुनि नहीं है। जिसके पास तृण मात्र भी परिग्रह है, वस्त्र और पात्र हैं, वह मुनि नहीं है। जैसे-चावल के ऊपर जो छिलका (धान) होता है, जब तक वह छिलका नहीं निकलेगा, तब तक वह चावल की चमक, उज्ज्वलता नहीं दिखाई देगी। चावल की चमक और उज्ज्वलता देखने के लिए धान को हटाना ही होगा। उसी तरह आत्मा को जानने के लिए वस्त्र और पात्र आदि परिग्रह छोड़ने ही होंगे क्योंकि इनमें राग-द्वेष रहने से पापबन्ध होता है। मुनि के पास सिर्फ पीछी, कमण्डल और शास्त्र होना चाहिए। शास्त्र भी प्रवचनसार :: 247
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy