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________________ नहीं जाते। बालक, बालिका नहीं बनता। बालिका, बालक नहीं बनती। परन्तु परिवर्तन निरन्तर चलता रहता है। उसी प्रकार एक द्रव्य दूसरे द्रव्य में प्रवेश नहीं करता-जीव, जीव ही रहता है, अजीव, अजीव ही रहता है। द्रव्य जीव अजीव पुद्गल धर्म -अधर्म आकाश काल अणु स्कन्ध निश्चय काल व्यवहार काल लोकाकाश अलोकाकाश प्रत्येक द्रव्य अपना-अपना काम करने के लिए स्वतन्त्र है। परिपूर्ण है। सभी द्रव्य अपने-अपने स्वामी हैं। दूसरे द्रव्यों के साथ केवल निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध हो सकता है। कर्ता-कर्म का सम्बन्ध मानना गलत है। __ आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं कि ये सभी द्रव्य परस्पर प्रवेश करते हैं, एकदूसरे को जगह देते हैं, बार-बार मिलते भी हैं, परन्तु कभी भी अपने स्वभाव को नहीं छोड़ते हैं।' यह अधिकार अध्यात्म का अधिकार है। इसमें भेदज्ञान की शिक्षा मिलती है। इसमें ज्ञानतत्त्व और ज्ञेयतत्त्व का निरूपण इस प्रकार किया गया है जिससे भेदविज्ञान की उत्पत्ति हो। देह क्या है, आत्मा क्या है, इन दोनों का सम्बन्ध कब से है, कैसे है? आदि बातों को विस्तार से समझाते हुए अन्त में कहते हैं कि ज्ञानी तो ऐसा विचारता है कि___'न मैं देह हूँ, न मन हूँ और न वाणी हूँ; मैं इनका कारण भी नहीं हूँ, कर्ता भी नहीं हूँ और करानेवाला भी नहीं हूँ। शरीर, मन और वाणी पुद्गल द्रव्य हैं। ये पुद्गलद्रव्य परमाणुओं के पिण्ड हैं। अतः मैं देह (शरीर) नहीं हूँ तथा देह का कर्ता भी नहीं हूँ। __ आचार्य कुन्दकुन्द के सभी ग्रन्थों में पाई जानेवाली सबसे महत्त्वपूर्ण गाथा भी इस अधिकार में हैं, जिसमें कहा गया है-आत्मा (जीव) में न रस है, न रूप है, न गन्ध है, न स्पर्श है और न शब्द है, अत: यह आत्मा इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण 246 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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