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कारण है। इससे केवल स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मोक्ष की प्राप्ति तो शुद्धोपयोग से ही होती है।
ज्ञान के साथ-साथ आनन्द और सुख-इन दोनों को जोड़ा गया है। ये दोनों आत्मा के मुख्य गुण हैं । इसलिए इन दोनों को जोड़कर ही आत्मा की बात की गयी है।
ज्ञान
इन्द्रियज्ञान अतीन्द्रियज्ञान इन्द्रियसुख
सुख
अतीन्द्रियसुख
दुख
सुख
इन्द्रियज्ञान और इन्द्रिय सुख - ये दोनों दुख हैं, क्योंकि ये आत्मा के स्वभाव नहीं हैं। वास्तव में ये सुख नहीं अपितु दुख देनेवाले हैं।
अतीन्द्रिय ज्ञान और अतीन्द्रिय सुख ये वास्तव में सुख हैं। ज्ञान का सुख के साथ परस्पर अभिन्न भाव सम्बन्ध है। ज्ञान वही है, जो सुखद हो ।
आचार्य शुभोपयोग (इन्द्रिय सुख, इन्द्रिय ज्ञान) और शुद्धोपयोग (अतीन्द्रिय सुख, अतीन्द्रिय ज्ञान) का अन्तर स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि वास्तव में शुद्धोपोग ही एकमात्र सुख देनेवाला है। अन्य कोई नहीं । उदाहरण
1. शुभोपयोग के कारण स्वर्ग की प्राप्ति होती है । स्वर्ग में देवों के पास विषयभोग की सामग्री अधिक होती है, देवगण लम्बे समय तक विषयभोगों में रमण करते रहते हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि वे दुखी हैं। यदि दुखी न होते तो विषयभोगों की इच्छा नहीं करते । इन्द्रिय सुखों की इच्छा करना ही दुख का कारण
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शुद्धोपयोग का सुख ही सच्चा सुख है। सुख उसे कहते हैं जो स्वाधीन हो, स्वतन्त्र हो, अनुपम हो और अनन्त हो । शुद्धोपयोग से उत्पन्न सुख ही वास्तव में सुख है, क्योंकि वह स्वाधीन है, स्वतन्त्र है, अनुपम है और अनन्त है।
2. शुभोपयोग के द्वारा आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता । अतीन्द्रिय सुख और अतीन्द्रिय ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकता है।
शुद्धोपयोग के ही द्वारा आत्मा मोक्ष प्राप्त कर सकता है। अतीन्द्रियज्ञान और अतीन्द्रिय सुख को प्राप्त कर सकता है । केवलज्ञान को प्राप्त कर सकता है।
242 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय