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स्थान बनाया है। इस ग्रन्थ को बहुत अधिक पढ़ाया जाता है, क्योंकि यह एक दार्शनिक ग्रन्थ है ।
5. विदेशों में भी इस ग्रन्थ को लोग बहुत पसन्द करते हैं । इस विषय पर बहुत रुचि के साथ अध्ययन एवं व्याख्यान किए जाते हैं ।
6. इस ग्रन्थ पर अनेक टीकाएँ लिखी गयी हैं ।
7. भाषा - शैली बहुत सरल है। यह प्राकृत भाषा ( लोक भाषा) में लिखा गया ग्रन्थ है। इसकी गाथाएँ संगीत प्रधान हैं।
ग्रन्थ का मुख्य विषय
प्रवचनसार ग्रन्थ में कुल तीन अध्याय (अधिकार) हैं1. ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन अधिकार या सम्यग्ज्ञानाधिकार
2. ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन अधिकार या सम्यग्दर्शनाधिकार
3. चरणानुयोग-सूचक- चूलिका या सम्यक्चारित्राधिकार
सबसे पहले आचार्य ने मंगलाचरण में धर्म तीर्थ के कर्त्ता वर्धमान स्वामी को नमस्कार किया है, क्योंकि वे शासन- नायक हैं। इसके बाद अन्य 23 तीर्थंकरों को नमस्कार किया है। उनके बाद आचार्यों, उपाध्यायों, गणधरों, साधुओं और पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार किया है। प्रारम्भ की 5 गाथाओं में मंगलाचरण किया गया है।
1. ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन या सम्यग्ज्ञानाधिकार ( गाथा 1-92 तक ) इस अधिकार को चार अवान्तर अधिकारों (उपअधिकारों) में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार हैं
1. शुद्धोपयोगाधिकार 2. ज्ञानाधिकार
3. सुखा
4. शुभपरिणामाधिकार
ग्रन्थ के आरम्भ में सबसे पहले चारित्र को धर्म कहा है । ' चारित्तं खलु धम्मो ' निश्चय से चारित्र ही धर्म है और यह चारित्रं साम्यभाव (समताभाव) का नाम है। अर्थात् मोह-राग द्वेष रहित आत्मा के परिणाम को साम्यभाव कहते हैं । चारित्र मात्र बाह्य क्रिया का नाम नहीं है, आत्मा के शुद्ध भाव और शुद्ध परिणाम का नाम चारित्र है ।
वास्तव में शुद्धोपयोग का नाम ही धर्म है। उसी से निर्वाण सुख की प्राप्ति होती है। शुभोपयोग से सुख प्राप्त होता है, मोक्ष नहीं । शुभोपयोग संसार का
प्रवचनसार :: 241