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________________ समय ध्यान रखना और अच्छी तरह से समझना, ये जीव नहीं हैं। ये बात इस अधिकार में समझाई है। शास्त्रों में जो देव, मनुष्य और तिर्यंच गति आदि बताई है, वह शरीर के होती हैं। अजीव के होती हैं । जीव के ये गति नहीं होती । जीव सिर्फ चेतनामय (प्राणवाला) है। अजीव में चेतना नहीं है । इसलिए जीव को जीव और अजीव को अजीव समझना चाहिए। इन दोनों को मिलाना नहीं है। अलग-अलग जानना चाहिए । व्यवहार के कथन द्वारा ही देह को जीव मान लिया गया है । पर देह पुद्गल है। अजीव के, पुद्गल के, इन्द्रिय, रंग और जाति होती है । जीव के इन्द्रिय, रंग और जाति कुछ नहीं होती हैं। 3. कर्त्ताकर्माधिकार ( गाथा 69-144 तक ) पहले जीवाजीवाधिकार में स्व और पर (दूसरे) की भिन्नता स्पष्ट कर दी। परन्तु जब तक यह आत्मा स्वयं को पर का कर्त्ता - भोक्ता मानता रहता है, तब तक वास्तविक भेदविज्ञान प्रकट नहीं होता है । बहुत लोग जीव और अजीव दोनों द्रव्यों को अलग-अलग मानने के बाद भी एक-दूसरे को कर्त्ता-कर्म मानते हैं, इसलिए इस भ्रम को तोड़ने के लिए यह कर्त्ताकर्म अधिकार लिखा है। 1. जीव, जीव का कर्त्ता होता है, अजीव का नहीं और अजीव, अजीव का कर्त्ता होता है, जीव का नहीं । यदि आत्मा को अजीव का कर्ता मान लें तो, आत्मा न तो स्वतन्त्र हो सकता है, न उसमें स्वावलम्बन का भाव जागृत हो सकता है। 2. यदि एक द्रव्य को दूसरे द्रव्य के कार्यों का कर्त्ता-भोक्ता मान लिया जाता है, तो प्रत्येक द्रव्य की स्वतन्त्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। इसी बात को कर्त्ता-कर्म अधिकार में बड़ी ही स्पष्टता से समझाया गया है। 3. पर के लक्ष्य से आत्मा में उत्पन्न होनेवाले मोह-रागभावों का कर्त्ता भी ज्ञानी नहीं होता, वह तो उन्हें मात्र जानता है। -द्वेष आदि विकारी 4. आत्मा में उत्पन्न होनेवाले मोह-राग- -द्वेष के भाव आस्रव भाव हैं। इस अधिकार का आरम्भ भी आत्मा और आस्रवों के बीच भेदविज्ञान से होता है। जैसे—जब आत्मा अलग है, शुभाशुभ भाव अलग है, तो शुभाशुभ भावों का कर्त्ता-भोक्ता आत्मा कैसे हो सकता है ? 5. आत्मा ज्ञानस्वरूप है, स्वयं ज्ञान ही है, अतः आत्मा को ज्ञान के 234 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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