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________________ में सबसे सुन्दर अपनी आत्मा है, जब इस आत्मा के साथ शरीर और अन्य सम्बन्ध जुड़ता है, तब सारे दुख शुरू हो जाते हैं, सारी कर्म-कहानी शुरू हो जाती है। सभी ने काम-भोग बन्ध के बारे में बहुत सुना है। इनका परिचय भी प्राप्त किया है, अनुभव भी किया है, लेकिन इस शुद्धात्मा की बात कभी नहीं सुनी है। न इसका परिचय प्राप्त किया है और न अनुभव किया है, इसलिए यह बात इसे कठिन लगती है। यह आत्मा ज्ञायक है। इसमें कोई भेद नहीं करना चाहिए। आत्मा के ज्ञानदर्शन-चारित्र हैं, यह बात व्यवहार से कही जाती है। निश्चय नय से आत्मा के ज्ञान भी नहीं है, दर्शन भी नहीं है, चारित्र भी नहीं है। आत्मा ज्ञान-दर्शन-चारित्र का एक अखण्ड पिण्ड है और एक शुद्ध स्वरूप है। जिस प्रकार म्लेच्छ व्यक्ति को म्लेच्छ भाषा के बिना कोई भी बात समझाई नहीं जा सकती है। उसी प्रकार व्यवहार के बिना संसारी जीवों को परमागम (शास्त्रों) का उपदेश नहीं समझाया जा सकता। इसलिए शास्त्रों में व्यवहार का उपदेश दिया है, लेकिन समझदार लोगों को उसमें से उत्तम अर्थ को ग्रहण करना चाहिए। शास्त्रों में जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष आदि सात तत्त्व और पुण्य-पाप मिलाकर नौ पदार्थ बताए हैं। इनको ठीक तरह से जो जानता है और जो अपनी आत्मा को शुद्ध जानता है, वही शुद्ध सम्यग्दृष्टि है। वही सारे शास्त्रों का ज्ञाता है। जो जीव आत्मा के शुद्ध स्वरूप को नहीं जानता वह अज्ञानी है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो साधु पुरुष हैं, उन्हें सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र का हमेशा सेवन करना चाहिए, इनका पालन करना चाहिए। पर वास्तव में इसका अर्थ है कि आत्मा की आराधना करना चाहिए। आत्मा की आराधना से ही सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र तीनों की आराधना हो जाती है। इस आराधना का नाम ही सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र है। जिस प्रकार कोई व्यक्ति अधिक धन पाने के लिए पूरी लगन निष्ठा से राजा की सेवा करता है, उस पर श्रद्धा करता है और उसकी आज्ञा का पालन करता है। उसी प्रकार मोक्ष प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को जीवरूपी आत्मा (राजा) को जानना चाहिए, फिर उस पर श्रद्धा करना चाहिए। उसके बाद उसी का अनुसरण करना चाहिए अर्थात् अनुभव के द्वारा उसमें तन्मय हो जाना चाहिए। सिर्फ आत्मा का ही ध्यान करना चाहिए। 232 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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