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और व्याख्याएँ लिखी गयी हैं। 7. अंग्रेजी, उर्दू और जापानी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में भी इसका
अनुवाद हो गया है। 8. देशों, प्रदेशों में ही नहीं, अपितु विदेशों में भी इस ग्रन्थ को बहुत अधिक
पढ़ा और पढ़ाया जाता है। 10. विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में यह ग्रन्थ
सम्मिलित है। 11. यह ग्रन्थ बहुत सरल और सुबोध भाषा में लिखा गया है। इसमें गाथा जैसा
मधुर छन्द है। उस समय जब इस ग्रन्थ की रचना हुई थी, तब इसकी गाथा को ग्वाले, बालक भी गाया करते थे। समयसार लिखने का मुख्य उद्देश्य
यही था कि इस ग्रन्थ को हर भारतीय आसानी से समझ सके। 12. भेदविज्ञान को जानने और समझने के लिए यह ग्रन्थ बहुत उपयोगी है।
हम कह सकते हैं कि वास्तव में 'समयसार' ग्रन्थ सर्वोत्कृष्ट आध्यात्मिक ग्रन्थ है। शुद्ध आत्मा का इतना सुन्दर वर्णन अन्यत्र दुर्लभ है।
__ जैसे-जीवन में एक बार तीर्थराज शिखरजी अवश्य जाना चाहिए, वैसे ही श्रावकों को जीवन में एक बार इस ग्रन्थराज का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए।
ग्रन्थ का मुख्य विषय समयसार ग्रन्थ में आचार्य अमृतचन्द्र की टीका के अनुसार 415 गाथाएँ और जयसेनाचार्य की टीका के अनुसार 439 गाथाएँ हैं। यह ग्रन्थ दस अधिकारों में विभक्त है।
1. पूर्वरंग अधिकार (गाथा 1-38 तक) समयसार को टीकाकारों ने नाटक का रूप दिया है, इसलिए इस अधिकार का नाम पूर्वरंग है। पूर्वरंग अर्थात् नाटक के पहले की प्रस्तावना।
इस अधिकार में सबसे पहले मंगलाचरण किया है। मंगलाचरण में आचार्य कुन्दकुन्द ने कहा है कि मैं ध्रुव, अचल और अनुपम गति को प्राप्त सिद्धों को नमस्कार करके केवली और श्रुतकेवली ने जो समझाया है, वह समयसार कहता हूँ।
जो जीव सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र में स्थित हैं, उन्हें स्वसमय कहते हैं। जो जीव पुद्गल में स्थित हैं, उन्हें परसमय कहते हैं। अर्थात् जो जीव आत्मा में स्थित है, वह 'स्वसमय' हैं, और जो शरीर में लगे रहते हैं वह 'परसमय' हैं। तीन लोक
समयसार :: 231