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अटल है वही अनित्य भी है और जो अनित्य है वह नित्य भी है। द्रव्यरूप से) प्रत्येक वस्तु नित्य है, पर्यायरूप से प्रत्येक वस्तु अनित्य है। इसी कारण नय के दो प्रकार हैं :
__ 1. द्रव्यार्थिक नय : वस्तु के द्रव्य के अंश को जाननेवाला द्रव्यार्थिक नय है। जैसे-सोना।
2. पर्यायार्थिक नय : वस्तु की पर्याय को जाननेवाला पर्यायार्थिक नय है। जैसे-सोने का कड़ा।
नयों की संख्या असंख्यात है। वे असंख्यात द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक के ही भेद हैं, क्योंकि उनका सबका विषय या तो द्रव्य होता है या पर्याय।
आध्यात्मिक दृष्टि से नय के मूल भेद : 1. निश्चयनय : जो भूतार्थ है अर्थात् सत्य है, वह निश्चय नय है। 2. व्यवहारनय : जो अभूतार्थ है अर्थात् असत्य है, वह व्यवहारनय है।
इसके बाद द्रव्यार्थिक नय के दस भेद और पर्यायार्थिक नय के छह भेद बताये हैं। इनके भेद-उपभेद भी विस्तार से इस ग्रन्थ में बताए हैं।
अतः जो पाठक विस्तार से नय को जानना चाहता है, कृपया वह इस ग्रन्थ का स्वाध्याय करे, क्योंकि यहाँ विषय का विस्तार करने से विषय कठिन हो जाएगा।
नय और प्रमाण में अन्तर नय और प्रमाण दोनों ही सम्यग्ज्ञान के रूप हैं। इस अपेक्षा से उनमें कोई अन्तर नहीं है। फिर भी प्रमाण सभी वस्तुओं को सामान्य विशेष रूप से एक साथ जानता है। और नय उसके किसी एक अंश को मुख्य रूप से जानता है। यही अन्तर है इसीलिए नय को प्रमाण का ही अंश कहते हैं। 5. निक्षेप परिभाषा : किसी भी बात को कहने की एक विशेष शैली है निक्षेप। निक्षेप के चार भेद हैं-(1) नाम (2) स्थापना (3) द्रव्य (4) भाव।
इन चारों को हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं।
उदाहरण : राजा चार प्रकार का है-नामराजा, स्थापनाराजा, द्रव्यराजा और भावराजा।
226 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय