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गुण दो प्रकार के होते हैं-1. सामान्य गुण और 2. विशेष गुण।
जो गुण सब द्रव्यों में पाये जाएँ उन्हें सामान्य गुण कहते हैं । ये दस प्रकार के होते हैं।
जो प्रत्येक द्रव्य के विशिष्ट गुण होते हैं उन्हें विशेष गुण कहते हैं। ये सोलह प्रकार के होते हैं।
सामान्य और विशेष गुण के प्रकारों का विस्तार से वर्णन इस ग्रन्थ में है।
2. पर्याय प्रत्येक द्रव्य में जो सामान्य और विशेष गुण हैं, उनके परिवर्तन या विकार को पर्याय कहते हैं।
जैसे-दूध का दही जमना। मिट्टी का घड़ा बनना। एक पर्याय उत्पन्न होती है तो एक पर्याय नष्ट होती है, अत: पर्याय उत्पाद-विनाशशील है।
जैसे-बालक जब बड़ा हो जाता है तो वह युवक बन जाता है। फिर बूढ़ा हो जाता है। युवक बनने पर बालक की पर्याय नष्ट हो जाती है। बूढ़ा होने पर युवक की, अतः पर्याय उत्पाद-विनाशशील है।
पर्याय दो प्रकार की होती है-(1) स्वभाव पर्याय (2) विभाव पर्याय।
पर्याय
स्वभावपर्याय सभी द्रव्यों में होती है।
विभावपर्याय जीव और पुद्गल द्रव्य __में ही होती है।
इसके बाद इस अध्याय में द्रव्य और गुणों में स्वभाव और विभाव की अपेक्षा से पर्यायों के चार भेद बताये हैं। और छः द्रव्यों के साथ पर्यायों का सम्बन्ध बताया है।
3. प्रमाण (1) वस्तु के सच्चे ज्ञान को प्रमाण कहते हैं। (2) जिसके द्वारा वस्तुतत्त्व को एकदम सही रूप में (शंका से रहित होकर)
जाना जाता है, पहचाना जाता है, उसे प्रमाण कहते हैं। जैसे-सीप को
नयचक्र :: 223