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है
इस ग्रन्थ में कुल 12 अधिकार (अध्याय) हैं
1. गुण अधिकार
2. पर्याय अधिकार
5. सात तत्त्व अधिकार
6. नौ पदार्थ अधिकार
7. प्रमाण अधिकार
8. नय अधिकार
9. निक्षेप अधिकार
10. सम्यग्दर्शन अधिकार
11. सम्यग्ज्ञान अधिकार
12. सम्यक् चारित्र अधिकार
उक्त बारह अधिकारों में से द्रव्य, पञ्चास्तिकाय, सात तत्त्व, नौ पदार्थ, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र - इन सात विषयों का वर्णन हम पूर्व में कर चुके हैं। (देखें पृष्ठ द्रव्य 160-164, पञ्चास्तिकाय 163 - 164, सात तत्त्व 142, नौ पदार्थ 165, सम्यग्दर्शन 104-106, सम्यग्ज्ञान 107-108; 123-124, सम्यक्चारित्र 108-116 ) अतः यहाँ हम केवल गुण, पर्याय, प्रमाण, नय और निक्षेप इन पाँचों पर ही चर्चा करेंगे, क्योंकि पूर्व के ग्रन्थों में उक्त सातों विषयों को बहुत ही आसानी से सरलता से समझा दिया है। अब गुण, पर्याय, नय और निक्षेप को सरलता से समझाने का प्रयास करेंगे, जैसा कि इस नयचक्र ग्रन्थ में दिया गया
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3. द्रव्य अधिकार
4. पञ्चास्तिकाय अधिकार
1. गुण
जो द्रव्य के साथ पाए जाते हों, जो द्रव्य के सहभावी (साथी) हों, उन्हें गुण कहते
हैं।
गुणों के समुदाय को द्रव्य कहते हैं, अतः गुण द्रव्य के सहभावी होते हैं और पर्याय क्रमभावी होती हैं अर्थात् एक द्रव्य के सब गुण एक साथ रहते हैं, किन्तु पर्याय एक के बाद एक क्रम से होती हैं। जैसे- जीव एक द्रव्य है और जीव के सभी गुण एक साथ रहते हैं । उसके स्वभाव साथ रहते हैं । परन्तु पर्याय एक के बाद एक क्रम से ही होती हैं ।
222 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय