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________________ 3. जैनदर्शन में वर्णित विषय के स्वरूपों को समझने के लिए यह एक अनिवार्य ग्रन्थ है । क्योंकि समयसार आदि ग्रन्थों को समझने के लिए जैन धर्म में एक विशेष पद्धति है - नय । अतः दार्शनिक और आध्यात्मिक ग्रन्थों को समझने के लिए 'नयचक्र' महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । 4. जैनधर्म को सम्पूर्ण रूप से समझने के लिए नय एवं प्रमाण का ज्ञान होना अनिवार्य है । ये दोनों ही विषय के स्वरूपों का निश्चय कराने के लिए मुख्य साधन हैं । 5. अनेकान्त का मूल ही नय है और जैन दर्शन अनेकान्तवादी है । 6. इस ग्रन्थ में नयों की चर्चा के साथ- साथ द्रव्य और पर्याय के अतिरिक्त आगम एवं अध्यात्म आदि विषयों का ज्ञान कराया गया है। 7. प्रस्तुत ग्रन्थ में द्रव्य, गुण तथा पर्याय को समझाने के लिए विस्तार से नयों का वर्णन किया है, जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । 8. यह एक ऐसा महान ग्रन्थ है, जिसमें स्वाध्यायोपयोगी प्रायः सभी विषय समाहित हैं, क्योंकि कुछ ग्रन्थों में द्रव्य, गुण, पर्याय तथा नयों की चर्चा है तो उसमें सप्ततत्त्व तथा रत्नत्रय की चर्चा नहीं है और कुछ ग्रन्थों में सप्ततत्त्व तथा रत्नत्रय की चर्चा है, तो नयों की विस्तृत चर्चा नहीं है । ग्रन्थ का मुख्य विषय इस ग्रन्थ में कुल 425 गाथाएँ हैं । सबसे पहले मंगलाचरण में आचार्य उन सिद्धों को और जिनदेव को नमस्कार करते हैं, जिन्होंने विश्वस्वरूप त्रिकालवर्ती द्रव्यों को पूर्ण रूप से देखा है । द्रव्यों के स्वभाव का ठीक-ठीक ज्ञान नयों का ज्ञान हुए बिना नहीं हो सकता । जैसे - धर्महीन मनुष्य सुख चाहता है और प्यासा मनुष्य पानी के बिना प्यास बुझाना चाहता है, वैसे ही मूढ़ मनुष्य नयों के बिना द्रव्यों का ज्ञान करना चाहता है । जैसे धर्म के बिना सुख नहीं हो सकता और पानी के बिना प्यास नहीं बुझ सकती, वैसे ही नयों के ज्ञान के बिना द्रव्यों के स्वरूप का बोध नहीं हो सकता । तथा द्रव्यों के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान हुए बिना सम्यग्दृष्टि नहीं हो सकता। इसलिए ग्रन्थकार ने इसे मोक्ष का मार्ग कहा है। जैसे—द्रव्यों के स्वभाव को समझने के लिए कुन्दकुन्दाचार्य के ग्रन्थ अनमोल हैं, वैसे ही नयों के स्वरूप को समझने के लिए नयचक्र ग्रन्थ अनमोल है। नयचक्र:: 221
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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