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________________ नयचक्र ग्रन्थ के नाम का अर्थ जैन साहित्य में नयचक्र नाम के तीन-चार ग्रन्थ मिलते हैं, जिनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध यही नयचक्र है। इस नयचक्र का पूरा नाम है - ' द्रव्यस्वभाव - प्रकाशक नयचक्र'। संक्षेप में इसे नयचक्र या द्रव्यस्वभाव - प्रकाश भी कहते हैं । चूँकि इस ग्रन्थ में द्रव्यानुयोग का कथन है और इसमें द्रव्यों के स्वभाव पर प्रकाश डाला गया है; द्रव्य, गुण, पर्याय और नय का वर्णन किया गया है, अतः इसे 'द्रव्यस्वभाव - प्रकाशक नयचक्र' कहा है । यह ग्रन्थ मुख्य रूप से नय पर आधारित है, अतः इसे नयचक्र कहा जाता है । ग्रन्थकार का परिचय प्रस्तुत ग्रन्थ ‘नयचक्र' आचार्य माइल्लधवल की एक श्रेष्ठ एवं अति महत्त्वपूर्ण रचना है । लेकिन हमें बड़े दुख के साथ यह कहना पड़ रहा है कि‘माइल्लधवल' आचार्य के बारे में बिलकुल भी परिचय प्राप्त नहीं होता है। इनका समय तक भी प्राप्त नहीं होता है । ग्रन्थ का महत्त्व 1. यह कृति यद्यपि आचार्य देवसेन के नयचक्र से प्रभावित है, फिर भी एक प्रामाणिक तथा महत्त्वपूर्ण रचना होने के कारण इसकी अपनी उपयोगिता है । 2. इस ग्रन्थ का अध्ययन कर लेने पर सम्पूर्ण नय का विषय स्पष्ट हो जाता है । 220 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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