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पं. दौलतराम कासलीवाल ने लिखी ।
4. परमात्मप्रकाश जैनगृहस्थों तथा मुनियों में बहुत प्रसिद्ध ग्रन्थ है । 5. इसकी लेखन शैली सरल है और भाषा सुगम अपभ्रंश है।
6. कन्नड़ और संस्कृत में इस ग्रन्थ पर अनेक प्राचीन टीकाएँ लिखी हैं। 7. अपभ्रंश- साहित्य में परमात्मप्रकाश सबसे प्राचीन अध्यात्मिक ग्रन्थ है। 8. योगीन्दु अध्यात्मवादी हैं । अपभ्रंश भाषा में शुद्ध अध्यात्मविचारों की ऐसी सशक्त अभिव्यक्ति अन्यत्र नहीं मिल सकती है।
9. इस ग्रन्थ का प्रभाव बाद में हिन्दी - सन्तों पर भी बहुत पड़ा है ।
ग्रन्थ का मुख्य विषय
परमात्मप्रकाश में दो महाधिकार हैं
1. आत्माधिकार (123 दोहे) 2. मोक्षाधिकार (214 दोहे)
पहला आत्माधिकार (1-123 )
परमात्मप्रकाश ग्रन्थ में सर्वप्रथम मंगलाचरण में पाँच दोहों में सिद्ध परमेष्ठी को नमस्कार किया गया है, उसके बाद अरिहन्त परमेष्ठी को उसके बाद आचार्यउपाध्याय-साधु परमेष्ठी को नमस्कार किया है।
ग्रन्थ के प्रारम्भ में प्रभाकर भट्ट ने भावसहित पंचपरमेष्ठी को नमस्कार
विनयपूर्वक यह प्रश्न पूछा है कि हे स्वामी ! मुझे इस संसार में परिभ्रमण करते हुए अनन्तकाल व्यतीत हो गया है, परन्तु मैंने आज तक किंचित मात्र भी सुख प्राप्त नहीं किया है। अपितु महान दुख ही प्राप्त किया है। अतः मुझे अब उस परमात्मा का स्वरूप समझाने की कृपा कीजिए, जिसको जानने पर मेरे चतुर्गति समस्त दुखों का विनाश हो जाए।
अपने शिष्य के प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य योगीन्दु उसे आत्मा के तीन भेदों का वर्णन समझाते हैं
1. बहिरात्मा : जो शरीर को ही आत्मा मानता है वह बहिरात्मा है ।
2. अन्तरात्मा : जो समाधि में स्थिर होकर ज्ञानमय परमात्मा को देखता है वह अन्तरात्मा है।
3. परमात्मा : जिसने कर्मों से मुक्त होकर ज्ञानमय आत्मा को प्राप्त कर लिया है वह परमात्मा है।
214 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय