________________
विस्तार से वर्णन कार्तिकेयानुप्रेक्षा ग्रन्थ में लिख चुके हैं। (देखें पृष्ठ 190-195 तक) अतः यहाँ नहीं लिखा जा रहा है। इस ग्रन्थ में बारह भावनाओं का क्रम थोड़ा भिन्न है, परन्तु विषय अन्य ग्रन्थों के समान ही है।
9. अनगारभावनाधिकार (गाथा 769-893) अनगार अर्थात् साध, मुनि। इस अधिकार में मुनियों की उत्कृष्ट चर्या का वर्णन है। साथ ही लिंग-व्रत, वसति, विहार, भिक्षा, ज्ञान, शरीर-संस्कार, त्याग, वाक्य, तप और ध्यान सम्बन्धी दस शुद्धियों का वर्णन इस अधिकार में विस्तार से किया
10. समयसाराधिकार (गाथा 894-1017) इस अधिकार में समयसार के सार का वर्णन करते हुए चारित्र को सर्वश्रेष्ठ कहा है। तप, ध्यान का वर्णन भी इसी अधिकार में किया है। आहारशुद्धि के प्रकरण में विभिन्न प्रकार की शुद्धियों का वर्णन है। यह अधिकार बहुत विस्तृत है। 11. शीलगुणाधिकार (1018-1043) इस शीलगुणाधिकार में शीलों की उत्पत्ति का क्रम, मुनि धर्म का स्वरूप एवं विवेचन, शील का उच्चारण और गुणों की उत्पत्ति का प्रकार एवं संख्या आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन आया है।
. शील के भेद : शील के अठारह हजार भेद होते हैं। .. तीन योग : मन, वचन और काय इन तीनों का अशुभ से संयोग होना करण है। इन अशुभ क्रियाओं को छोड़ना चाहिए।
चार संज्ञाएँ : आहार, भय, मैथुन और परिग्रह की अभिलाषा का नाम संज्ञा है। इन चारों का त्याग करना चाहिए।
पाँच इन्द्रियाँ : स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र-इन पाँचों इन्द्रियों के विषयों का त्याग करना चाहिए।
दस काय : काय अर्थात् सभी प्रकार के जीव। पृथिवीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, प्रत्येक वनस्पतिकाय, साधारण वनस्पतिकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों की दया पालना ये 10 काय हैं।
दस धर्म : संयमियों का आचरण विशेष धर्म है। ये दस धर्म हैं-उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य, उत्तम ब्रह्मचर्य। 210 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय