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________________ ही सरल भाषा में आलोचना, प्रतिक्रमण निन्दा और गर्हा इन चारों को समझाया है। जीव समाधि मरण में किस प्रकार भाव रखे- इसका विस्तार से वर्णन इस अधिकार में किया है। 3. संक्षेपप्रत्याख्यानाधिकार ( गाथा 108-121) इस अधिकार में सिंह, व्याघ्र, दुर्घटना, अग्नि या रोग के द्वारा आकस्मिक मृत्यु आ जाने पर कषाय और आहार का त्याग कर, समताभाव धारण करने का निर्देश दिया है। 4. समाचाराधिकार ( गाथा 122-197 ) प्रातः काल से रात्रिकाल तक की साधुओं की चर्या का नाम ही समाचार चर्या है। समाचार शब्द का अर्थ चार प्रकार से बताया है 1. समता समाचार : रागद्वेष का अभाव होना समता समाचार है । 2. सम्यक् आचार : निरतिचार मूलगुणों का पालन करना सम्यक् आचार है। 3. सम आचार : पाँच महाव्रत आचारों को सम आचार कहा है । 4. समान आचार : सभी का समान रूप से पूज्य जो आचार है वह समान आचार है। इस अधिकार में मुनियों को एकलविहारी होने का निषेध किया है। आर्यिकाओं की चर्या, उनका विहार, साधुओं का वंदन आदि अनेक विषयों पर भी इस अधिकार में प्रकाश डाला गया है। 5. पंचाचाराधिकार (गाथा 198-419 ) दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्य - इन पाँच प्रकार के आचार में कृत, कारित और अनुमोदना से जो दोष होते हैं, उन अतिचारों का विस्तार से वर्णन इस अधिकार में किया है। दर्शनाचार : जीव, अजीव आदि सात तत्त्वों का श्रद्धान करना । ज्ञानाचार : पाँच प्रकार के ज्ञान के निमित्त अध्ययन आदि करना । चारित्राचार : प्राणियों के वध का त्याग और इन्द्रियों पर संयम रखना । तपाचार : कठोर तप करना, कायक्लेश आदि तप करना । वीर्याचार : शुभ विषय में अपनी शक्ति उत्साह रखना । इस अधिकार में इन पाँचों आचारों के दोष ( अतिचार) भी बताए हैं। स्वाध्याय-सम्बन्धी नियमों और सूत्र - ग्रन्थों के स्वरूप भी बतलाए गये हैं। 208 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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