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________________ मूलाचार ग्रन्थ के नाम का अर्थ मूलाचार अर्थात् मूल आचार। इस ग्रन्थ में श्रमण (मुनि) का मूल आचार वर्णित है, अतः इस ग्रन्थ का नाम मूलाचार है। ग्रन्थकार का परिचय आचार्य वसुनन्दि ने मूलाचार की संस्कृत-टीका लिखी है और उस टीका की प्रशस्ति में इस ग्रन्थ के कर्ता को वट्टकेर, वट्टकेर्याचार्य आदि के रूप में उल्लिखित किया है। इनका समय ई. सन् की पहली शती का माना जाता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि आचार्य कुन्दकुन्द ने यह ग्रन्थ लिखा है। कुछ विद्वान आचार्य वट्टकेर और आचार्य कुन्दकुन्द को एक ही मानते हैं। यह ग्रन्थ लगभग दो हजार वर्ष पूर्व रचा गया था। वट्टकेर आचार्य की अन्य कृतियाँ उपलब्ध नहीं होती हैं, फलतः इनका समय एवं परिचय कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। ग्रन्थ का महत्त्व 1. मूलाचार ग्रन्थ दिगम्बर परम्परा का आचारांग ग्रन्थ है। 2. यह सर्वप्रथम प्राचीन ग्रन्थ है जिसमें दिगम्बर मुनियों के आचार-विचार, चारित्र-साधना और उनके मूलगुणों का क्रमबद्ध प्रामाणिक विवरण है। 3. यह ग्रन्थ संग्रह-ग्रन्थ न होकर एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है। 4. अनेक प्रमुख ग्रन्थों जैसे-भगवती आराधना, तिलोयपण्णत्ति और विजयोदया आदि में मूलाचार ग्रन्थ का उल्लेख हुआ है, जिससे ज्ञात होता है कि यह सर्वप्रथम एवं प्रामाणिक ग्रन्थ है। 206 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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