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भगवती आराधना
ग्रन्थ के नाम का अर्थ इस ग्रन्थ का मूल नाम 'आराधना' है और उसके प्रति आदरभाव व्यक्त करने के लिए 'भगवती' विशेषण लगाया गया है, जैसे कि तीर्थंकरों और महान आचार्यों के नामों के साथ 'भगवान' विशेषण लगाया जाता है। ग्रन्थ के अन्त में ग्रन्थकार ने 'आराधना-भगवती' लिखकर आराधना के प्रति अपना महत् पूज्यभाव व्यक्त किया है एवं उसका नाम भगवती आराधना दिया है, अत: यह ग्रन्थ 'भगवती आराधना' के नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध है।
ग्रन्थकार का परिचय भगवती आराधना के रचनाकार शिवार्य हैं। भगवती आराधना के अन्त में दी हुई प्रशस्ति के अनुसार ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि आर्य शब्द एक विशेषण है। इनका नाम शिवनन्दि, शिवगुप्त या शिवकोटि होना चाहिए।
शिवार्य विद्वान, विनीत, सहिष्णु और पूर्वाचार्यों के भक्त थे। इनका जन्म समय ई. सन् की प्रथम शताब्दी माना जाता है। इस ग्रन्थ की रचना इन्होंने पूर्वाचार्यों द्वारा निबद्ध ग्रन्थों के आधार पर की है।
ग्रन्थ का महत्त्व 1. जैन परम्परा में प्रारम्भ से ही आराधना का विशेष महत्त्व रहा है। यथार्थ में आराधनापूर्ण जीवन ही सच्चा जीवन है, आराधनापूर्वक मरण ही यथार्थ मरण है। आराधना के अभाव में न जीवन श्रेष्ठ है, न मरण श्रेष्ठ है।
2. इस ग्रन्थ में अनेक कथा-प्रसंगों का वर्णन है, जिनको संकलित करके अनेक कथाकोश रचे गये हैं। सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि यह ग्रन्थ 200 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय