SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 8. संवरानुप्रेक्षा ( गाथा 95-101 ) आस्रवों को रोकना संवर है । सम्यक्त्व, देवव्रत, महाव्रत तथा कषायों को जीतना तथा मन, वचन, काय की क्रिया का अभाव होना संवर है। संवरानुप्रेक्षा में संवर के स्वरूप और कारणों का विवेचन करते हुए सम्यक्त्व, व्रत, गुप्ति, समिति, अनुप्रेक्षा, परिषहजय आदि का चिन्तन करना आवश्यक माना है। इसी सन्दर्भ में आर्त्त ध्यान और रौद्र ध्यान के परिणाम को त्यागने की बात कही है। 9. निर्जरा अनुप्रेक्षा ( गाथा 102-114) अहंकार रहित होकर जो बारह प्रकार के तप करता है (निर्जरा अर्थात् कर्मों को नष्ट करना) उसके कर्मों की निर्जरा होती है तथा वैराग्यभावना से जो तप करता है उसको तप करने से निर्जरा होती है। निर्जरा दो प्रकार की है सविपाक - जो कर्म अपनी स्थिति को पूर्ण कर, उदय में आकर नष्ट हो जाते हैं उसे सविपाक निर्जरा कहते हैं । अविपाक - तप के कारण जो कर्म स्थिति पूर्ण हुए बिना ही नष्ट हो जाते हैं, वह अविपाक निर्जरा कहलाती है । अर्थात् तप के द्वारा कर्मों को नष्ट करना अविपाक निर्जरा है । श्रेष्ठ तप करके अपने कर्मों को नष्ट करने से ही उत्कृष्ट निर्जरा होती है । • • 10. लोकानुप्रेक्षा ( गाथा 115-283 ) जहाँ जीव-अजीव आदि पदार्थ देखे जाते हैं वह लोक कहलाता है। लोक में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन छः द्रव्यों का निवास है । इस अनुप्रेक्षा में इन छः द्रव्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। लोक के स्वरूप और आकार-प्रकार का विस्तार से वर्णन है । लोकानुप्रेक्षा में द्रव्यों के स्वभाव - गुण को बतलाते हुए, शरीर से भिन्न आत्मा की अनुभूति करने का चित्रण किया है। 11. बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा ( गाथा 284-301) बोधि अर्थात् आत्मज्ञान । बोधिदुर्लभ भावना में आत्मज्ञान की दुर्लभता पर प्रकाश डाला गया है। आरम्भ में बतलाया गया है कि संसार में समस्त पदार्थों की प्राप्ति सुलभ है, पर आत्मज्ञान की प्राप्ति होना अत्यन्त दुष्कर है। सम्यक्त्व के बिना 198 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy