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________________ कार्तिकेयानुप्रेक्षा ग्रन्थ के नाम का अर्थ इस ग्रन्थ का नाम है कार्तिकेय + अनुप्रेक्षा । कार्तिकेय इस ग्रन्थ के रचनाकार का नाम है और अनुप्रेक्षा का अर्थ है, बारम्बार चिन्तन करना । स्वामी कार्तिकेय ने बारह भावनाओं (अनुप्रेक्षाओं) का वर्णन इस ग्रन्थ में किया है, अतः इसका नाम कार्तिकेयानुप्रेक्षा है । इसका अन्य नाम 'बारस- अणुवेक्खा' अर्थात् बारह भावना भी है। ग्रन्थकार का परिचय कार्तिकेयानुप्रेक्षा के रचयिता आचार्य कार्तिकेय हैं। उनका दूसरा नाम स्वामी कुमार भी है। आचार्य कार्तिकेय का समय विक्रम संवत् की दूसरी-तीसरी शती माना जाता है। शुभचन्द्र भट्टारक ने बारस- अ - अणुवेक्खा के रचयिता का नाम कार्तिकेय बताया है, उन्होंने कहा है कि कार्तिकेय मुनि दारुण ( भयानक) उपसर्ग को समताभाव से सहन कर समाधिपूर्वक मरण द्वारा देवलोक को प्राप्त हुए हैं । स्वामी कार्तिकेय प्रतिभाशाली, आगम को जाननेवाले और अपने समय के प्रसिद्ध आचार्य हैं। इनकी एक मात्र रचना कार्तिकेयानुप्रेक्षा ही है । ग्रन्थ का महत्त्व 1. ये बारह अनुप्रेक्षाएँ जिनागम के अनुसार कही गयी हैं । 2. जो भव्य जीव इनको पढ़ता, सुनता और भावना भाता है, उसे शाश्वत सुख प्राप्त होता है। कार्तिकेयानुप्रेक्षा :: 193
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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