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पर आपने बड़े महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं। आपको कवियों में तीर्थंकर के समान माना जाता था, क्योंकि आपने कवियों का पथ-प्रदर्शन करने के लिए लक्षणग्रन्थ की रचना की थी। सभी परवर्ती आचार्यों ने आपको नमस्कार किया है। कहा जाता है कि आचार्य पूज्यपाद विदेह क्षेत्र जाया करते थे।
रचनाएँ- आचार्य पूज्यपाद की निम्नलिखित रचनाएँ उपलब्ध हैं1. दसभक्ति
2. जन्माभिषेक 3. तत्त्वार्थवृत्ति (सर्वार्थसिद्धि) 4. समाधितन्त्र 5. इष्टोपेदेश
6. जैनेन्द्रव्याकरण 7. सिद्धिप्रिय-स्तोत्र
ग्रन्थ का महत्त्व
1. इस ग्रन्थ में अध्यात्म का सम्पूर्ण विषय मात्र 107 श्लोकों में दिया गया है। 2. यह अध्यात्मविद्या का बहुत महत्त्वपूर्ण एवं सरल ग्रन्थ है। 3. सबसे खास विशेषता है कि इसमें बहुत सारे सूत्र हैं। इन छोटे-छोटे सूत्रों
और वाक्यों में बड़ी-बड़ी बातों एवं गम्भीर विषय को सरल तरीके से समझाया है। जैसे
• शरीर में आत्मबुद्धि ही समस्त दुखों का मूल कारण है। • आत्मा में आत्मबुद्धि ही दुखों से मुक्ति का सरल उपाय है। • बहिरात्मा शरीर के सुख के लिए धर्म करता है, तो वह धर्म अच्छा
नहीं होता। सार्थक एवं फलदायी नहीं होता, आदि-आदि। • इस ग्रन्थ में बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा के स्वरूप का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। सरल उदाहरण देकर इन तीनों को
समझाया है। • इस ग्रन्थ में आत्मा, शरीर, इन्द्रिय और कर्मसंयोग, इन सबका संक्षेप
में बहुत ही सरल एवं हृदयस्पर्शी वर्णन किया है। • इस ग्रन्थ में शरीर और आत्मा के भेद को बहुत अच्छे से समझाया है।
ग्रन्थ का मुख्य विषय आचार्य सबसे पहले मंगलाचरण में सिद्ध भगवान को नमस्कार करते हैं, क्योंकि सिद्ध भगवान ने आत्मा को ही अपना माना है, दूसरे पदार्थों को अपना नहीं माना है।
इस ग्रन्थ के माध्यम से आचार्य अपने श्रोता को बार-बार यही कहते हैं कि
समाधितन्त्र :: 187