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समाधितन्त्र
ग्रन्थ के नाम का अर्थ
इस ग्रन्थ के दो नाम प्रचलित हैं- 1. समाधिशतक, 2. समाधितन्त्र।
'समाधि' शब्द का अर्थ- समाधि का अर्थ है- ध्यान करना, आत्मा में लीन होना या आत्मा में लीन होकर योग करना । जब आत्मा अपने को आधि, व्याधि और उपाधि से ऊपर उठा लेता है, उसका नाम है - समाधि |
आधि = मानसिक रोग, व्याधि = शारीरिक तकलीफ, उपाधि = बाहरी तकलीफ। जब जीव स्वयं को सभी मानसिक, शारीरिक और बाहरी तकलीफों से दूर करके आत्मा में ही लीन हो जाता है तब वह समाधि को प्राप्त करता है। समाधि का मतलब यहाँ मरण नहीं है । समाधि अपनी आत्मा, परमात्मा को प्राप्त करने का साधन है।
1. 'समाधिशतक' नाम इसलिए प्रसिद्ध है, क्योंकि इस ग्रन्थ में समाधि के विषय को लगभग 100 (107) श्लोकों में बताया गया है। लगभग 100 श्लोक हैं, अतः इसका नाम 'समाधिशतक' है।
2. 'समाधितन्त्र' नाम इसलिए रखा, क्योंकि 'तन्त्र' का मतलब होता है मार्ग, साधन, कार्य, पद्धति या उपाय । यह ग्रन्थ समाधि का साधन बतलाता है, आत्मा से परमात्मा बनने का उपाय बतलाता है, इसलिए इसका नाम 'समाधितन्त्र' है।
ग्रन्थकार का परिचय
यह ग्रन्थ आचार्य पूज्यपाद ने लिखा है। इनका मूल नाम देवनन्दि था। इनका समय छठी शती का मध्यकाल माना जाता है। आचार्य पूज्यपाद अद्भुत प्रतिभा के धनी और प्रकाण्ड विद्वान थे। आप प्रसिद्ध कवि थे । इसके साथ ही आप आयुर्वेद, व्याकरण, अध्यात्म और न्याय आदि विविध विषयों के ज्ञाता थे । इन सभी विषयों
186 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय