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________________ का अनुभव होने लगता है। 'पर' (दूसरे पदार्थ) से दुख प्राप्त होता है और 'स्व' (आत्मा) से सुख प्राप्त होता है, इसलिए विद्वान आत्मा को पाने के लिए प्रयत्न करते हैं । यही असली धर्म है। सुख शान्ति का यही मूल मन्त्र है । इसलिए जिसने आत्मा को जान लिया वह ज्ञानी है। जिसने आत्मा को नहीं जाना वह अज्ञानी है। अतः आत्म तत्त्व को जानो, ज्ञानी बनो और आत्मा का अनुभव करो, क्योंकि आत्मध्यान के द्वारा परम आनन्द की प्राप्ति होती है । सारी जिनवाणी का सार और तत्त्व का सार इतना ही है कि 'जीव अन्य है, पुद्गल अन्य है' अर्थात् आत्मा अलग है और शरीर अलग है । जिसने यह सार समझ लिया उसने जिनवाणी और तत्त्व का सार समझ लिया । इस तरह हम जीव को जीव समझें, पुद्गल को पुद्गल समझें। जीवन में समता भाव अपनाएँ। जो व्यक्ति इष्टोपदेश को समझ जाता है, वह घर में हो या वन में हो; वह अनासक्त, विरागी और सम्यग्दृष्टि धर्मात्मा है । वही सुख, शान्ति और मोक्ष लक्ष्मी प्राप्त करता है । जिसने इष्टोपदेश ग्रन्थ को समझ लिया, उसका जीवन आध्यात्मिक हो जाता है, अतः इस ग्रन्थ का स्वाध्याय अवश्य करें । इष्टोपदेश :: 185
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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