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2. मात्र 51 श्लोकों में पूरे अध्यात्म का सार इसमें समाहित है। यह ग्रन्थ 'गागर में सागर' की युक्ति को चरितार्थ करता है ।
3. पिछले 1500 वर्षों से इस ग्रन्थ को पढ़ा जा रहा है। विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में भी इस ग्रन्थ को पढ़ाया जाता है।
4. इस ग्रन्थ पर अनेक आचार्यों ने टीकाएँ भी लिखी हैं।
5. यह ग्रन्थ संक्षिप्त, सरल और सुन्दर है।
ग्रन्थ का विषय
'इष्टोपदेश' ग्रन्थ में मात्र 51 श्लोक हैं । इन श्लोकों में अध्यात्म का परिचय है । इस ग्रन्थ को पढ़कर कोई भी व्यक्ति अध्यात्मविद्या को आसानी से समझ सकता है।
आचार्य पूज्यपाद मंगलाचरण में किसी भी विशेष भगवान, तीर्थंकर या आचार्य आदि को नमस्कार नहीं किया है। उन्होंने शुद्धात्मा और परमात्मा को नमस्कार किया है । वे कहते हैं कि जिस जीव ने अपने कर्मों का नाश करके अपने शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति कर ली है, मैं उसी शुद्धात्मा, परमात्मा को नमस्कार करता हूँ। इस प्रकार इस ग्रन्थ का मंगलाचरण भी अपने आप में बड़ा ही अनूठा और आध्यात्मिक है।
इसके बाद आचार्य अध्यात्म के विषय को बहुत ही गहराई से उदाहरणों द्वारा समझाकर कहते हैं कि
आत्मा स्वभाव से परमात्मा है, लेकिन अनादिकाल से इसमें राग-द्वेष का मैल मिला हुआ है। जिस प्रकार सोने को जब जमीन से निकाला जाता है, तब सोने के साथ-साथ उसमें मलिनता और कालिमा भी होती है । परन्तु जब सुनार उस सोने को अग्नि में तपाता है, तब उसकी मलिनता और कालिमा नष्ट हो जाती है, और वह पूर्ण शुद्ध सोना हो जाता है। इसी तरह हमारी आत्मा भी अनादिकाल राग-द्वेष में फँसी हुई है। हमें भी अपनी आत्मा के मैल राग- -द्वेष का दूर हटाकर आत्मा को पूर्ण शुद्ध करना है। तब हम परमात्मा को जान सकते हैं।
जिस तरह भिन्न-भिन्न दिशाओं और क्षेत्रों से आकर बहुत सारे पक्षी रात में अलग-अलग वृक्षों पर बैठ जाते हैं और सुबह होते ही सभी पक्षी अलगअलग दिशाओं में उड़ जाते हैं । इसी तरह आत्मा भी अलग-अलग शरीर धारण करता है, समय आने पर एक शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में पहुँच जाता है । इसलिए हमें पर पदार्थों (धन, पैसा और मकान) और परिवार के लोगों के प्रति
182 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय